Makan # 706

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रेणु ‘राजवंशी’ गुप्ता जीवन के इस मोड़ पर कुछ अधिक अपने विषय में कहने-लिखने को प्रतीत नहीं होता है। पाने-खोने का लंबा दौर पूरा हो गया है, अब जो आगे है—वह तटस्थ, बिना नए कर्म अर्जित किए पूरा हो जाए, यही भाव रहता है। पारिवारिक दृष्टि से पति है, पुत्र है, पुत्रवधु है एवं पौत्र है। कुल मिलाकर जीवन सफल, शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण है। सामाजिक दृष्टि से अपने दायरे में मान है, नाम है एवं प्रतिष्ठा है। अनेक समाज-सेवी संगठनों के माध्यम से कुछ करने का अवसर मिला है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों को निकट से देखने का अवसर मिला है। अनेक कविता-संग्रह, कहानी-संग्रह एवं उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान उपन्यास ‘संसारी-संन्यासी’ ने मेरे समक्ष नवीन-पथ एवं नवीन लक्ष्य को परिलक्षित किया है। भाईजी के जीवन ने मुझे उस जीवन में झाँकने के लिए प्रेरित किया है, जो मेरी दृष्टि से ओझल था। भाईजी के आशीर्वाद एवं प्रभु की अनुकंपा से भीतरी यात्रा का शुभारंभ हो गया है। गत सैंतीस वर्षों से अमेरिका मेरा घर है। भारत मेरे हृदय में बसता है। सोच में बसता है। अमेरिका मेरी दिनचर्या एवं व्यवहार में रचता-बसता रहता है।

Renu ‘Rajvanshi’ Gupta

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