मैनेजर पाण्डेय : आलोचना का आलोक - अपने ढंग के अनूठे और खरे आलोचक, निर्भीक चिन्तक और मार्क्सवाद को भारतीय सन्दर्भों में परिभाषित करने की चुनौती स्वीकार करने वाले विलक्षण सभ्यता-संस्कृति विचारक मैनेजर पाण्डेय जी का आलोचना जगत में अन्यतम स्थान है। वे उन आलोचकों में से हैं जिनके शब्दों पर यक़ीन किया जा सकता है, इसलिए कि वे विपरीत स्थितियों में भी बिना डिगे हिम्मत से अपनी बात कहते रहे हैं। रामविलास जी की आलोचना, चिन्तन पद्धति और साम्राज्यवाद विरोधी विचारों को पूरी शक्ति से आगे बढ़ाने का काम जिन आलोचकों ने पूरी ईमानदारी के साथ किया है, उनमें मैनेजर पाण्डेय जी का क़द सबसे ऊँचा है। बेशक वे हमारे दौर के उन तेजस्वी आलोचकों में से हैं, जिनका आलोचनात्मक विवेक और वैचारिक दृढ़ता एक मिसाल बन चुकी है। अपने समय में बहुतों ने उनसे आलोक ग्रहण किया, और उनके जाने के बाद भी आलोचना के समकाल में उनकी व्यापक उपस्थिति बहुत रूपों में नज़र आती है। हमारे दौर के सजग कवि-आलोचक और 'समालोचन' के कर्णधार अरुण देव द्वारा सम्पादित पुस्तक मैनेजर पाण्डेय : आलोचना का आलोक उन विरली पुस्तकों में से है, जो मैनेजर पाण्डेय जी की शख़्सियत और लेखन कर्म को समग्रता से समझने का जतन करती है। मैनेजर पाण्डेय की इतिहास-दृष्टि, उनकी आलोचकीय दृष्टि और मीमांसा, और इसके साथ ही उनका आलोचकीय विवेक और दृढ़ता ये सारे पक्ष पुस्तक में बहुत निखरे हुए रूप में सामने आते हैं । पुस्तक में मैनेजर पाण्डेय जी से अरुण देव की लम्बी बातचीत है, जो बहुत पठनीय है और पाण्डेय जी की शख़्सियत और लेखन कर्म को बिल्कुल अलग नज़रिये से समझने की उत्सुकता जगाती है। उम्मीद है, हिन्दी आलोचना के विवेकशील पाठकों और अध्येताओं के साथ-साथ, मैनेजर पाण्डेय जी के सैकड़ों पाठकों और प्रशंसकों को इस चिर प्रतीक्षित पुस्तक से ख़ासा तोष होगा। और बेशक हिन्दी साहित्य जगत में पुस्तक का बड़े उत्साह से स्वागत होगा।
अरुण देव - 16 फ़रवरी 1972 को कुशीनगर में जन्मे अरुण देव ने अपनी उच्च शिक्षा जेएनयू, नयी दिल्ली से प्राप्त की है। उनके तीन कविता-संग्रह क्या तो समय (2004), कोई तो जगह हो (2013); उत्तर पैग़म्बर (2020) प्रकाशित हैं। कोई तो जगह हो के लिए उन्हें 2013 का 'राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान' प्राप्त है। उत्तर पैग़म्बर के लिए 2022 का 'देवेन्द्र कुमार कविता सम्मान' मिला है। उनकी कविताओं के अनुवाद असमी, कन्नड़, तमिल, मराठी, नेपाली, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में हुए हैं। अशोक वाजपेयी पर उनकी दो सम्पादित किताबें प्रकाशित हैं। अरुण देव पिछले 13 वर्षों से साहित्य, कला और विचार की वेब पत्रिका ‘समालोचन' का सम्पादन कर रहे हैं जिसे एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक परिघटना की तरह देखा जा रहा है। 'समालोचन' के लिए उन्हें प्रथम 'इत्यादि' सम्मान भी मिला है। ई-मेल : devarun72@gamil.com
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