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मुनि विशल्यसागर मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले के बमीठा में जन्मे मुनिश्री विशल्यसागर जी महाराज, वात्सल्य रत्नाकर गणाचार्य श्री विरागसागर जी महाराज के प्रमुख शिष्यों में से एक हैं । अल्पवय (मात्र 16 वर्ष की अवस्था) में ही अन्तर्यात्रा की ओर अग्रसर होने वाले मुनि श्री साधना, संयम और सृजन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। सतत स्वाध्याय चिन्तन-मनन की मूल प्रवृत्तियों के धारक होने के साथ जैनागम साहित्य सिद्धान्त के तलस्पर्शी अध्येता एवं आगमविद् ज्ञान ध्यान तप में निरत आप एक प्रखर प्रतिभा सम्पन्न योगी हैं। आप ओजस्वी आगम प्रवक्ता, कुशल लेखक, निष्णात मनीषी हैं । धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ विषयों की सहज और सरल प्रस्तुति आपकी विशिष्ट पहचान है । आप सम्प्रति के समन्तभद्र हैं। भयानक रोग, बीमारियों को जीतकर विजयी हो पुनः महाव्रतों (मुनिपद) में स्थापित हुए हैं। आपने संघर्ष ही जीवन है को सहज स्वीकारा है । आप सहज समतावान साधक हैं। पूर्व नाम : वीरेन्द्र कुमार जैन I जन्म : 11 मई, 1977, वैराग्य : 18 दिसम्बर, 1993 क्षुल्लक दीक्षा : 28 जनवरी, 1995, मंगलगिरि, सागर ऐलक दीक्षा : 23 फ़रवरी, 1996, देवेन्द्र नगर, पन्ना मुनि दीक्षा : 14 दिसम्बर, 1998, बरासों (भिण्ड) स्वास्थ्य लाभ पश्चात् पुनः मुनि दीक्षा : शरद पूर्णिमा ( 13.10.2019), बेलगछिया, कोलकाता साहित्य सृजन : ज़िन्दगी एक संघर्ष, अन्तस् की आवाज़, बूँद से सागर, नमामि विरागसागरम्, विराग भक्ति गंगा । आगामी कृतियाँ : सम्बोधि- -सूत्र, मत थामो वैशाखियाँ, अमृत घट, चिन्तन की अनुभूतियाँ । संकलन / सम्पादित साहित्य : दूर नहीं है मंज़िल, ऐसे चलो मिलेगी राह, आस्था आलोक, पर्यूषण निधि, साधना के सोपान, विराग वन्दना, शुद्धात्म तरंगिणी, निजात्म तरंगिणी, श्रुत दीपिका, रयणसार, बारसाणुपेक्खा । अनुवादित कृति : समाहि भत्ति (अप्प संबोहण) ।
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