हमारे जीवन में अनेक रंगों का मेला लगा हुआ है। कभी सुख का कभी दु:ख का, कभी प्रसन्नता का कभी आँसुओं का, कभी नुकसान का कभी फायदे का, कभी संवेदनहीनता का कभी संवेदन शीलता का....। जो संवेदनहीन होते हैं वो जीवन में कुछ नहीं कर पाते, जो संवेदनशील होते हैं वो बन जाते हैं कवि, शायर, लेखक, रचनाकार, कलाकार आदि। ऐसे लोग रिश्तों की कीमत जानते हैं उन्हें शिद्दत के साथ जीना जानते हैं चाहे वो भोतिक जीवन में निम्न पद हों या उच्च पद पर। जी हाँ ऐसे ही एक व्यक्त्तित्व का नाम है अजय श्रीवास्तवा “ अजेय ” भारतीय रेल में उच्च राजपत्रित प्रशासनिक पद पर हैं। वो जितने अच्छे प्रसाशनिक अधिकारी है उतने ही अच्छे और सवेंदनशील कवि भी। अजय जी जितने बाहरी मित्रों के प्रति ईमानदार हैं उस से कहीं अधिक अपने रिश्तों के प्रति भी। उनका प्रथम कविता संग्रह ‘बाऊजी’ इसी बात का गवाह भी है। अपने पिता को बाऊजी संबोधन देना उनके प्रति अतिरिक्त आदरेय भाव प्रकट करना है और इनकी वर्तमान कविता ‘मौन के अनुनाद से भरा मैं’ इनकी सारी कविताएँ परिपक्वता लिए हुए जीवन दर्शन को समाहित करते हुए है। अपने इस संग्रह में परिवार के साथ बिताये गए एक-एक पल, उन सबकी आदतों और व्यवहार को बहुत खूबसूरती से इस कविता में पिरोया है। -- डॉ. विष्णु सक्सेना.
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