शब्दों में भीगा मयूरम - \nयह कविता संग्रह काव्यानुभूति की एक नवेली आभा के साथ पाठकों के समक्ष हैI इन कविताओं में गीली मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू और सितारों के राग हैंI एक नन्हा काव्यमयी ह्रदय जब प्रथम बार अपनी धमनियों में शब्दों की गुनगुनाहट महसूस करता है तो उन्हें काग़ज़ पर उतारते हुए एक आत्मीय अहसास उसे घेर लेता हैI इसी अहसास को ख़ुद में समेटे हुए यह कोमल और सपनीली कविताएँ पाठकों के सामने हैंI जैसा कि इस संग्रह के शीर्षक से ही ज्ञात होता है कि यह कविताएँ मन की भंगिमाओं को प्रस्तुत करती हैं और करुण होकर इन्हें सींच रही हैंI ऐसे में पाठकों को यह पूरा अधिकार है कि इन नन्ही पाखियों-सी कविताओं को वह चाहे तो अपना स्वप्न दे दे या असीम स्नेह, एक ही बात हैI
नम्रता शाह दुबे - नम्रता शाह दुबे एक राष्ट्रीयकृत बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक के पद पर वाराणसी में कार्यरत हैं। बापू की नगरी गुजरात में जन्मी नम्रता का परिवार एक साल बाद ही वाराणसी आ गया और वे यहीं पलीं-बढ़ीं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट तथा आई.आई.आई.टी इलाहाबाद से एम.बीए. किया। शादी भी यहीं हो गयी तो भोले की नगरी की होकर रह गयीं। लिखने का शौक़ तो स्कूल के समय से रहा और स्कूल की वार्षिक मैगज़ीन में कई बार कविताएँ छपीं भी। फिर इंटर कॉलेज स्पर्धाओं में कई पुरस्कार एवं सम्मान मिले। कई छोटी-बड़ी कविताएँ बैंक की स्पर्धाओं एवं ब्लॉग पर आती रहती हैं। ‘शब्दों में भीगा मयूरम’ इनका पहला कविता संग्रह हैI
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