मिठो पाणी खारो पाणी - \nप्रस्तुत उपन्यास 'मिठो पाणी खारो पाणी' सिन्ध के पाँच हज़ार साल के इतिहास को छोटे-छोटे टुकड़ों में सँजोकर उत्तर-आधुनिक पैश्टिच शिल्प में लिखा गया है —जहाँ इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, सांस्कृतिक इतिहास आदि विभिन्न विधाओं की आवाजाही एवं अन्तःसम्बद्धता बनी रहती है। पोस्ट माडर्निस्ट इंटरटेक्स्चुअलिटी की तरह इसकी यही विशेषता इसे हिन्दी भाषा में उत्तर हिस्टयोग्राफ़िक आधुनिक उपन्यासों की श्रेणी का मेटाफिक्शन की मान्यता प्रदान करता है। इसकी यही विशेषता एवं शक्ति इतिहास में जाकर अपने समय एवं सत्ता को न सिर्फ़ ललकारती है वरन उसे मुठभेड़ की चुनौती भी पेश करती है।\nमिठो पानी 'सिन्धु नदी' से खारो पानी 'अरब सागर' तक की यह यात्रा एक दिलचस्प भौगोलिक यात्रा तो है ही, एक पूरी संस्कृति और सभ्यता को दर्शाने वाली आन्तरिक यात्रा भी है। यह कृति इस पूरी सभ्यता की कई सहस्राब्दियों के जन-इतिहास एवं लोक-चेतना को रेखांकित करती हुई एक अविरल हिन्दुस्तानी सभ्यता एवं संस्कृति की समीक्षा के साथ-साथ इसे एक नया अर्थ एवं आयाम देती है।\nजया जादवानी ने सिन्धु नदी को उसकी सम्पूर्ण ऐतिहासिकता, मिथ और लोक-चेतना में व्याप्त उसके सम्पूर्ण सन्दर्भों सहित नायकत्व प्रदान किया है।\nएक सर्वथा पठनीय कृति।
जया जादवानी जन्म : 1 मई 1959, कोतमा (म.प्र.) शिक्षा : एम. ए. हिन्दी और मनोविज्ञान कृतियाँ : मैं शब्द हूँ, अनन्त सम्भावनाओं के बाद भी (कविता संग्रह); मुझे ही होना है बार-बार, अन्दर के पानियों में कोई सपना काँपता है (कहानी-संग्रह); तत्त्वमसि (उपन्यास); कुछ न कुछ छूट जाता है (लघु उपन्यास) । सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन सम्पर्क : कस्तूरबा नगर, जरहा भाटा, बिलासपुर-495001 (छत्तीसगढ़)
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