मोरीला - \n'मोरीला' एक अन्यतम प्रेमकथा है। प्रेम जो कल्पना से यथार्थ तक आते-आते सामाजिक विसंगतियों और झंझावातों में अपना निश्छल-निष्कलुष रूप को खोता हुआ त्रासद हो उठता है।\nग्रामीण परिवेश में जनमी इस कथा के अनेक खुरदरे रंग हैं जो मोर रंगों की धनक से धूसर काले रंगों में बदलते जाते हैं। मोर के पंखों की प्रेमिल रंग-बिरंगी छटा रक्त में डूबकर एक कठोर रंगलोक का पर्याय हो उठती है। उपन्यास की नायिका के अन्तर्लोक में प्रेम के प्रति राग और विराग का सूक्ष्म अंकन एक आश्चर्य की तरह है जो इधर इस तरह दूसरी कथाओं में दिखाई नहीं दे रहा है।\n'मोरीला' दरअसल हमारे मानस से छिटक गये प्रेम की स्निग्धता के पुनर्वास का एक अभिनव उपक्रम है। निर्दय समाज में प्रेम पर होते आक्रमणों की तरफ़ इशारा करता यह उपन्यास अपनी प्रासंगिकता को स्थापित करता हुआ, कुछ अर्थगर्भी संकेत करता है। अपनी सादा भाषा, आत्मीय क़िस्सागोई और नैसर्गिक आन्तरिक संगीत 'मोरीला' को विशिष्ट बनाता है।
बलराम कांवट - जन्म : 1987 में राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में। जयपुर, पुणे और दिल्ली में पढ़ाई की। फ़िलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी। लेखन की शुरुआत कविताओं से की जो सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। वागर्थ कविता प्रतियोगिता, 2007 का दूसरा पुरस्कार। कविताओं के बाद उपन्यास लेखन शुरु किया। 'मोरीला' पहला उपन्यास है। इन दिनों दिल्ली में निवास।
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