मृत्युंजय - \n1942 के स्वाधीनता आन्दोलन में असम की भूमिका पर लिखी गयी एक श्रेष्ठ एवं सशक्त साहित्यिक कृति है 'मृत्युंजय'। असम क्षेत्रीय घटनाचक्र और इससे जुड़े हुए अन्य सभी सामाजिक परिवेश इस रचना को प्राणवत्ता देते हैं। इसके चरित्र समाज के उन स्तरों के हैं जो जीवन की वास्तविकता के वीभत्स रूप को दासता के बन्धनों में बँधे-बँधे देखते, भोगते आये हैं। और अब प्राणपन से संघर्ष करने तथा समाज की भीतरी-बाहरी उन सभी विकृत मान्यताओं को निःशेष कर देने के लिए कृतसंकल्प दीखते हैं।\nउपन्यास में विद्रोही जनता का मानस और उसके विभिन्न ऊहापोहों का सजीव चित्रण है। विद्रोह की एक समूची योजना और निर्वाह, आन्दोलनकारियों के अन्तर-बाह्य संघर्ष, मानव-स्वभाव के विभिन्न रूप, और इन सबके बीच नारी-मन की कोमल भावनाओं को जो सहज, कलात्मक अभिव्यक्ति मिली है वह मार्मिक है। कितनी सहजता से गोसाईं जैसे चिर-अहिंसावादी भी हिंसा एवं रक्तपात की अवांछित नीति को देशहित के लिए दुर्निवार मानकर उसे स्वीकारते हुए अपने आपको होम देते हैं और फिर परिणाम? स्वातन्त्र्योत्तर काल के अनवरत, उलझे हुए प्रश्न?...\nभारतीय ज्ञानपीठ को हर्ष है कि उसे असमिया की इस कृति पर लेखक को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने का गौरव मिला।

बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य - जन्म: 1924, असम। 1949 में बर्मी सीमान्त के एक छोटे से गाँव में विज्ञान के अध्यापक और बाद में गुवाहाटी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफ़ेसर। साहित्य अकादेमी के भूतपूर्व अध्यक्ष। असमिया साहित्यिक पत्रिका 'वह्नि' के सहायक सम्पादक, दैनिक असमिया' में सहायक सम्पादक, समाजवादी पत्रिका 'जनता' और 'रामधेनु' के सम्पादक तथा 1967 में 'नवयुग' के सम्पादक रहे। 1958 में एक शिष्टमण्डल के सदस्य के रूप में नगा पर्वत श्रेणियों का भ्रमण किया। 1956 के आसपास डॉ. राममनोहर लोहिया के घनिष्ठ सम्पर्क में आये। सैंतीस वर्ष की अवस्था में ही साहित्य अकादेमी पुरस्कार; 1979 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। बाद में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष पद पर आसीन हुए। प्रकाशन: असमिया में लगभग बीस उपन्यास; जिनमें प्रमुख हैं: 'इयारुइंगम', 'मृत्युंजय' और 'प्रतिपद'; दो कहानी-संग्रह तथा विभिन्न पत्रिकाओं में सौ से अधिक कहानियाँ एवं डेढ़-सौ के लगभग कविताएँ; कई रूपक, यात्रावृत्तान्त और निबन्ध। बांग्ला तथा अंग्रेज़ी से आठ कृतियों के असमिया अनुवाद। सन् 1997 में देहावसान।

बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य अनुवाद डॉ. कृष्ण प्रसाद सिंह मागध

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