जब से कवियों ने कविताएँ लिखना शुरू किया है प्रेम कविता का एक स्थायी विषय रहा है। अलग-अलग कवियों ने अपने-अपने नज़रिये से प्रेम को देखा है, परखा है और अभिव्यक्त किया है। रेखा मैत्र ने प्रेम के लिए सिक्कों का बिम्ब चुना है। यूँ भी प्रेम में दिल का ख़ज़ाना लुटाना एक आम मुहावरा है । रेखा मैत्र की उस कविता का हवाला दें जिस पर संग्रह का नामकरण हुआ है तो वे भी मुहब्बत के सिक्कों को लुटाने की बात करती हैं। लेकिन इन कविताओं में प्रेम के दूसरे बिम्ब भी हैं । सूनेपन के, रिक्तता के मानो ख़ाली ख़ज़ानों की छवियाँ भी इन कविताओं में रेखा जी अंकित की है और एक हल्की-सी अवसाद की छाया जो प्रेम में हरदम महसूस होती है चाहे दिल का ख़ज़ाना भरा हो या ख़ाली । यही इन कविताओं को मार्मिक बनाता है।
रेखा मैत्र बनारस (उ.प्र.) में जन्म। प्राथमिक शिक्षा बनारस में होने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदन्तर, मुम्बई विश्वविद्यालय में टीचर्स ट्रेनिंग में डिप्लोमा किया। इसके अलावा, आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के विशेष कार्यक्रम में भाग लिया। कुछ समय तक मध्य प्रदेश में आयोजित 'अमरीकी पीस कोर' के प्रशिक्षण कार्यक्रम में अमरीकी स्वयंसेवकों को आपने हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया। फिर 5-6 वर्षों तक राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के मुम्बई स्थित हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत विभिन्न केन्द्रीय कार्यालयों/उपक्रमों/ कम्पनियों के अधिकारियों और कर्मचारियों को हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया। अमरीका में बसने के बाद आपने अमरीका स्थित 'गवर्नेस स्टेट यूनिवर्सिटी' से कुछ ट्रेनिंग कोर्स किए और कुछ समय तक वहाँ अध्ययन कार्य किया। फिर कुछ समय के लिए आप मलेशिया में रहीं और अमरीका में अंकुरित काव्य-लेखन यहाँ पल्लवित हुआ। आजकल आप फिर अमरीका में हैं और यहाँ भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी साहित्यिक संस्था 'उन्मेष' के साथ आप सक्रिय रूप से जुड़ी हैं और काव्य-लेखन में मशगूल हैं।
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