पिछले दो-ढाई दशकों में हिन्दी कथा-साहित्य के पटल पर युवा कथाकारों की एकदम से उमड़ आयी भीड़ के बीच अंकिता जैन का नाम अपना एक अलग ही सिग्नेचर लेकर आया है... सिग्नेचर जो परिभाषित करता है मानवीय संवेदनाओं की सुलगती आँच में सीझे-सीझे से किरदारों की कहानियाँ। चुस्त शिल्प, सधे हुए कथ्य और अपनी सम्मोहित करने वाली लेखन-शैली के साथ अंकिता जैन ने बिना किसी शोर-शराबे के साथ जिस तरह से विगत चार-पाँच वर्षों में धीरे-धीरे अपनी पहचान बुलन्द की है... वो जितना प्रशंसनीय है, उतना ही अनुकरणीय भी। अंकिता की कहानियों में स्त्री किरदारों का मौजूदा परिवेश के प्रति एक जो अपरिभाषित-सा सहमापन, एक जो संकोच भरी हिचकिचाहट व्याप्त है, वो उसके अन्दर के लेखक की स्वतः अर्जित अनुभूतियों और प्रखर अवलोकन का परिणाम है। नहीं, ये कहीं से किसी विमर्श की तलाश करता हुआ सहमापन या हिचकिचाहट नहीं है... बल्कि एक फैला हुआ परिस्थितिजन्य सत्य है, इस दौर की क्रूर मानसिकता को उधेड़ने भर का प्रयास है और जिसे अंकिता जैन के पाठकों ने उसकी कहानियों के मार्फत देखा, भाला और सराहा है। अपने पहले दो कहानी-संग्रहों से अपना ख़ास पाठक-वर्ग तैयार करने के बाद अंकिता जैन का पहला उपन्यास उम्मीदों की भरी-भरी टोकरियाँ लेकर आया है। उपन्यास का फ़लक महज़ किसी अनसुलझी गुत्थी या ‘क़ातिल कौन’ की परिपाटी पर ही नहीं सिमटा हुआ है। मुहल्ला सलीमबाग़ के सन्दिग्धों की परतें उधेड़ते हुए उपन्यास की कथा-वस्तु और हमारे आस-पड़ोस वाले जाने-पहचाने से किरदार वर्तमान सरोकारों में एक सघन विस्तार समेटे हैं... विस्तार, जो हमारे समाज के नैतिक-अनैतिक मूल्यों को उनकी समस्त विरूपताओं और विडम्बनाओं के साथ प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास अंकिता जैन की रौशन लेखनी को एक नयी चौंध देगा... इसी दुआ के साथ। - कर्नल गौतम राजऋषि, लेखक एवं शायर
अंकिता ने बनस्थली विद्यापीठ से कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में एमटेक करने के बाद सीडेक, पुणे में साल भर आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस में शोधकार्य किया, फिर भोपाल के बंसल कॉलेज में बतौर लेक्चरर पढ़ाया भी, लेकिन नौकरी से उखड़े मन ने उन्हें लेखन जगत में ला खड़ा किया, जहाँ उन्होंने बतौर सम्पादक एवं प्रकाशक 'रुबरू दुनिया' मासिक पत्रिका का तीन साल प्रकाशन किया। पिछले छह वर्षों से अंकिता वैदिक वाटिका में बतौर डायरेक्टर कार्यरत हैं। वे आदिवासी किसानों के बीच रहकर खेती-किसानी में सक्रिय हैं। लेखन जगत में अंकिता को उनका पहला ब्रेक फ्लैश मोव गीत 'मुम्बई 143' से मिला जिसके बोल अंकिता ने लिखे थे। जो सबसे बड़ा फ्लैश मोब होने की वजह से लिम्का बुक ऑफ़ नेशनल रिकॉर्ड में अपनी जगह बना चुका है। उसके बाद अंकिता की लिखी कहानी को अन्तर्राष्ट्रीय कहानी लेखन प्रतियोगिता में टॉप टेन में जगह मिली तो उन्हें लगा कि वो थोड़ा-बहुत कहानी लिख सकती हैं। जिस ख़्याल ने उन्हें बिग एफ़एम के फेमस रेडियो शो यादों का इंडियट बॉक्स तक पहुंचाया। जहाँ उनकी लिखी 10 कहानियाँ ऑन एयर हुई। रेडियो के एक अन्य शो यूपी की कहानियों में भी उनकी लिखी 14 कहानियाँ ऑन एयर हो चुकी हैं। मार्च 2017 में अंकिता की पहली हिन्दी किताब ऐसी-वैसी औरत प्रकाशित हुई, जो कम समय में ही जागरण-नील्सन बेस्ट सेलर बन गयी। नवम्बर 2018 में अंकिता की दूसरी किताब मैं से माँ तक प्रकाशित हुई जो गर्भावस्था पर आधारित हिन्दी में अपनी तरह की पहली किताब है। जनवरी 2020 में अंकिता की तीसरी किताब बहेलिए प्रकाशित हुई जो पाठकों के बीच ख़ासी पसन्द की जा रही है। अक्टूबर 2020 में अंकिता की चौथी किताब ओह रे! किसान प्रकाशित हुई, जो अमेज़न हॉट रिलीज़ एवं एनवायरनमेंट इकोनॉमिक्स श्रेणी में बेस्ट सेलर रही। इस किताब को पर्यावरण मन्त्रालय भारत सरकार द्वारा 'मेदिनी पुरस्कार 2020-21 प्राप्त हुआ है। अंकिता प्रभातख़बर अख़बार की साप्ताहिक मैगज़ीन सुरभी, एवं लल्लन टॉप न्यूज़ पोर्टल पर अपने 'माँ-इन-मेकिंग' कॉलम के लिए भी पाठकों के बीच काफ़ी पसन्द की जा चुकी हैं। उनके लेख अहा! ज़िन्दगी, इंडिया टुडे, आईचौक, नवभारत टाइम्स (गोल्ड) में प्रकाशित होते रहते हैं। अंकिता ने राजस्थान पत्रिका के लिए एक वर्ष तक मासिक सम्पादकीय लिखे। नवम्बर 2021 में यूनिसेफ़ एवं राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'युवा स्पीक्स' में छत्तीसगढ़ के सात सफल युवाओं में सम्मिलित किया गया।
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