मुन्ना बैंडवाले उस्ताद - \nउत्तर उपनिवेशवादी भारतीय जीवन के कथाकार हैं शिवदयाल। वह चाहे दाम्पत्य जीवन का प्रतिरोध हो या बाज़ारवाद का प्रतिरोध, परजीविता का प्रतिरोध हो या फिर बिन्दास जीवनशैली का प्रतिरोध—सब मिलाकर उत्तरआधुनिक सभ्यता का प्रतिरोध हैं शिवदयाल की कहानियाँ। शिवदयाल न तो समय से त्रस्त हैं और न आशंकित। नये समाज के रचने के क्रम में वे समय भी रच देते हैं। भूमण्डलीकरण के नये अर्थतन्त्र की उलझन से अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करते चन्दन और ख़ुशबू जैसे उनकी कहानियों के पात्र सहज ही नायकत्व पा जाते हैं। चूँकि हर कहानी किसी एक सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति है, इसलिए सभी कहानियों में एक ही कहानी अनस्यूत है। यथार्थ की भाषा रचने में कथाकार की कला की सहजता दिखाई पड़ती है।\nशिवदयाल न तो गल्प गढ़ते हैं और न ही वृत्तान्त को रबड़ की तरह खींचते हैं वरन् जीवन-प्रवाह में गल्प के विवर्त उठ खड़े होते हैं। उनके नायक और नायिका उत्तरआधुनिक जीवन के बिन्दास पात्र नहीं हैं। वर्ग चरित्र में वे पेंचकश की तरह प्रवेश करते हैं और उनके शील का उन्मोचन करते हुए वर्ग की पहचान रेखांकित कर देते हैं।\nशिल्प की जिस सहजता का दर्शन इन कहानियों में होता है वह आम आदमी की आमफहम भाषा से ही सम्भव है। कथ्य और शिल्प की इस अन्तरंगता के कारण ही 'मुन्ना बैंडवाले उस्ताद' के लेखक शिवदयाल हमारे समय के प्रतिनिधि कहानीकार बन गये हैं।—विजेन्द्र नारायण सिंह
शिवदयाल - जन्म: 1960, ज़िला सीवान के शीतलपुरा (मैरवा ग्राम में । शिक्षा: एम. ए. (श्रम एवं समाज कल्याण)। सन् 1974-77 के बिहार आन्दोलन में सक्रिय हिस्सेदारी। आन्दोलन के अनन्तर निकली परिवर्तनकारी धाराओं से जुड़ाव। लेखन-प्रकाशन: कई चर्चित कहानियाँ एवं उपन्यास समेत दर्जनों वैचारिक निबन्ध प्रकाशित। 'छिनते पल छिन' (उपन्यास) तथा 'बिहार की विरासत' (वैचारिक) प्रमुख कृतियाँ गत्यात्मकता एवं विकास पर केन्द्रित पत्रिका 'सहयात्री' के सम्पादन से सम्बद्ध पंचायत राज, गवर्नेस एवं विकास आदि विषयों पर पुस्तकों/प्रशिक्षण सामग्री का निर्माण एवं सम्पादन कार्य।
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