बचपन में भूगोल पढ़ने का बहुत शौक़ था । क्लास में एटलस निकालकर दुनिया भर की जगहों के नाम खोजने का खेल खेला करते थे।\n\nकहते हैं जहाँ चाह, वहाँ राह। पत्रकारिता ने घूमने के बहुत अवसर दिये । बचपन के सारे सवाल और जिज्ञासाओं के जवाब दुनिया भर में घूमकर तलाशे। हिन्दी पत्रकारिता की जुझारू पथरीली राह से कुछ बेहतरीन रास्ते निकले। रिपोर्टिंग करियर के दौरान यूनाइटेड नेशन की सात अन्तरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस कवर कीं। यह अवसर स्वास्थ्य और पर्यावरण के क्षेत्र में मिली दो अन्तरराष्ट्रीय फ़ेलोशिप की वजह से मिला। इनमें से एक एचआईवी एड्स पर काइज़र फ़ाउंडेशन यूएस की थी और दूसरी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट सीएसई की।\n\nघुमक्कड़ी के बारे में विचारकों ने काफ़ी कुछ कहा है। मेरा अपना अनुभव भी यही है कि किताबें बहुत ज़रूरी हैं। वह उत्सुकता जगाती हैं लेकिन जिज्ञासाओं का शमन घूमने से होता है।\n\nपत्रकार को अपने ठौर से बाहर निकलने के हर अवसर का फ़ायदा उठाना चाहिए। आदिकाल से मनुष्य घुमक्कड़ रहा है। के लोग जितने घुमक्कड़ थे आज वह मुल्क उतना ही समृद्ध है। \n-सुधीर मिश्र
सुधीर मिश्र - शिक्षा : एम. ए. राजनीति शास्त्र, लखनऊ विश्वविद्यालय । कृतियाँ : व्यंग्य संग्रह : हाइब्रिड नेता, लघु फ़िल्म गूलर का फूल ( बार्सिलोना फ़िल्म अवॉर्ड्स के लिए चयनित ) । सम्मान : नार्वे इन्फॉर्मेशन विभाग की ओर से 2021 के लिए महात्मा गांधी इंटरनेशनल अवॉर्ड, प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान 2016, देवर्षि नारद सम्मान 2017, काइज़र फ़ाउंडेशन अमेरिका की एचआईवी एड्स फ़ेलोशिप 2007, सीएसई की पर्यावरणीय बदलावों पर पहली साउथ एशियन फ़ेलोशिप 2008 | सम्प्रति : स्थानीय सम्पादक, नवभारत टाइम्स, दिल्ली। दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और दैनिक हिन्दुस्तान में 28 साल का पत्रकारीय अनुभव ।
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