जब बात आजीविका की होती है तब इंसान को महत्वाकांक्षाओं से समझौता करना पड़ता है। प्रियजन की मौत मस्तिष्क में गहरा छाप छोड़ देती है जिसके बाद ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है। संघर्ष जीवन का हिस्सा बन जाता है। लोगों से रोज़ वही बातें होती हैं, अपनी मतलब की बातें। अवचेतन मन खेल खेलने लगता है और दिन-साल बराबर लगते हैं। बीतते ही नहीं! ‘माई रिलिजन माई राइट’ एक ऐसा टीवी रौशनदानो जिसका मकसद दुनियाभर के साधारण लोगों की असाधारण कहानी बताना था। शो से जुड़े लोगों की ज़िंदगी तब बदल गई जब रौशनदानो का होस्ट अचानक गायब हो गया। उसकी तलाश में की गई छोटी-सी कोशिश एक ऐसे रोमांचक सफ़र को दर्शाती है जिसकी बुनियाद भरोसा और संघर्ष है जो कभी भी टूट सकते हैं।.\n\n
???? ????? ????????? ?? ???????? ??? ?? ???? ???? ???? ?? ???? ???? ??????? ???.
ShubhamAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers