‘नदी मौन है’ सुधी कवयित्री रचना शर्मा का तीसरा संग्रह है। अंतर-पथ उनके सहृदय चित्त की बानगी देने वाला संग्रह था तो नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो, स्त्री मन की भावनाओं का ज्ञापन, जिसमें छोटी छोटी रचनाओं में प्रश्नाकुलता के साथ वे जीवन जगत के अपने अनुभवों को संवेदना की शीतल पाटी पर उकेरती हैं। इस संग्रह में कवयित्री का मन पर्यावरण और प्रकृति के साहचर्य में अपनी कल्पना के ताने-बाने बुनता है तो जीवन में सहज ही आयत्त प्रेम की कल्पनाओं में डूबता भी है। जीवन जितना कुदरत से दूर होता जा रहा है उतना ही प्रेम से रिक्त। ये कविताएं जीवन को प्रेम और कुदरत के साहचर्य से संवलित करने का उपक्रम हैं। इन कविताओं में स्त्री की तमाम कोमल अभिलाषाएं हैं तो प्रीत की डोर में बंधने से लेकर नदियों के कूल- किनारे, प्रकृति के मंडप-तले परिणय रचाने की उत्कंठा भी। कभी किसी कवयित्री ने लिखा था,’ मत गूँथो मेरा हीरक मन अपनी कोमल बरजोरी से/ नयनों की रेशम-डोरी से।‘ ये कविताएं उन मनकों की तरह हैं जिन्हें एक कवयित्री ने अपने चित्त की रेशम डोरी में गूंथ रखा है। नदी मौन है-केवलव शीर्षक ही नहीं, आज के तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल वाले दौर में नदी की खामोशी और खिन्नता का इज़हार भी है। जिस तरह बॉंधों और बाधाओं से नदियों की गति अवरुद्ध है, उसी तरह स्त्रियों की अभिव्यक्ति के सम्मुख अनेक गत्यावरोध हैं । नदी मौन है - इन प्रतिकूलताओं के प्रति एक प्रत्याख्यान है।
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