नौटंकी और लोक-परंपराओं की उपादेयता और संभावनाएँ मे समेकित रूप से नौटंकी की तात्विकता और प्रदर्शनधर्मी कलाओं को विलुप्त से बचाने की आवश्यकता पर एक विचारोत्त्तेजक संवाद है। इस चर्चा के क्रम में कौटिल्य ने रंगोपजीवी पुरुषों और नाट्य, नृत्य, गीत, वाद्य, संगीत आदि का उल्लेख किया है
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