न्यू मीडिया और बदलता भारत - \nबदलते विश्व के साथ न सिर्फ़ पत्रकारिता की भाषा और परिभाषा बदली है, बल्कि इसके आयाम भी बहुत विस्तृत हुए हैं। नित नवीन तकनीकों के आगमन ने मीडिया को एक ख़ास क़िस्म की ताक़त प्रदान की है, हालाँकि यह भी उतना ही सही है कि सम्पादक जैसी संस्थाओं का पत्रकारिता जगत में लोप-सा होता चला गया है। कहा जाता है कि इंटरनेट ने लोगों की जीवन शैलियों में परिवर्तन उत्पन्न किये हैं, न्यू मीडिया ने एक वर्चुअल दुनिया को जन्म दिया है : एक ऐसी दुनिया को, जहाँ कोई भी अपने विचार बहुत आसानी से रख सकता है और न्यू मीडिया या वेबसाइट्स के ज़रिये बहुत सारे लोगों तक पहुँचा सकता है। शायद न्यू मीडिया की द्रुतता और इसके सुविधाजनक होने के कारण इसके प्रयोक्ताओं की संख्या बढ़ती जा रही है।\nपत्रकारिता की नयी संरचनाओं से सम्बन्धित यह पुस्तक मीडिया के क्षेत्र में हुए हालिया वैश्विक विकास की गहन पड़ताल करती है। भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया का समाचार-माध्यमों पर क्या असर पड़ा है, समाचारों की अन्तर्वस्तु की महत्ता क्यों घटी है, जनसरोकार क्यों हाशिये पर जा रहे हैं, पब्लिक स्फीयर में क्यों और कितना संकुचन हुआ है, ऑनलाइन रहने के क्या निहितार्थ होते हैं, स्वामित्व में संकेन्द्रण का मीडिया के सन्देशों पर क्या प्रभाव पड़ता है— ऐसे अनेक प्रश्नों से मुठभेड़ करती यह पुस्तक न्यू मीडिया की भीतरी तहों तक जाती है और व्यापक सरोकारों पर ज़ोर दिये जाने का आग्रह करती है। अपनी इस पुस्तक में प्रांजल धर और कृष्णकान्त ने सोशल मीडिया समेत न्यू मीडिया को जानने-समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। यह दृष्टिकोण ऐसे समय में बहुत महत्वपूर्ण है, जब फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप जैसे द्रुत माध्यमों के कारण, ऐसा लगता है कि, दुनिया हमारी नज़दीकी पहुँच में आ गयी है। यहाँ हैक्टिविज़्म जैसे अपेक्षाकृत नये विचारों पर व्यापक विमर्श मौजूद हैं जो मीडिया के शोधार्थियों या विद्यार्थियों के साथ-साथ आम पाठकों के लिए भी बहुत उपयोगी हैं। असल में जिस तरीक़े की मीडिया साक्षरता की ज़रूरत विकासशील देशों को है, यह पुस्तक अपनी सधी हुई भाषा, प्रस्तुति और वैचारिकी के साथ उस दिशा में पाठकों को कुछ आगे ज़रूर ले जाती है।—वसन्त सकरगाए
प्रांजल धर - जन्म: मई 1982 में, ज्ञानीपुर गाँव, गोण्डा (उ.प्र.) में। शिक्षा: जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में डिप्लोमा। कार्य: कवि, आलोचक, मीडिया विश्लेषक और अनुवादक। जल, जंगल और ज़मीन आदि के बुनियादी मुद्दों पर सृजनात्मक कार्य कविताओं का कुछ देशी विदेशी भाषाओं में अनुवाद। 'नया ज्ञानोदय', 'नेशनल दुनिया' और 'द सी एक्सप्रेस' समेत अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में पिछले डेढ़ दशक से नियमित स्तम्भ लेखन। अवधी और अंग्रेज़ी भाषा में भी लेखन। सम्मान: राजस्थान पत्रिका पुरस्कार (2006), अवध भारती सम्मान (2010), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार (2010), दक्षेस का विशेष लेखक सम्मान (2013), भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार (2012), हरिकृष्ण त्रिवेदी सम्मान (2015-16 )। पुस्तकें: 'अन्तिम विदाई से तुरन्त पहले' (कविता संग्रह); 'मीडिया और हमारा समय', 'समकालीन वैश्विक पत्रकारिता में अख़बार', 'महत्व रामधारी सिंह दिनकर समर शेष है' व 'अनभै' पत्रिका के चर्चित पुस्तक संस्कृति विशेषांक का सम्पादन। लेखक – कृष्णकान्त - जन्म: 30 अगस्त, 1986 को गोण्डा ज़िले में। प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा वहीं से। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और पत्रकारिता में परास्नातक। अमर उजाला, प्रभात ख़बर, आज समाज, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर में बतौर चीफ़ सब एडीटर कार्य करने के बाद फ़िलहाल पत्रकारिता की एक नौकरी में। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ, कहानियाँ और समीक्षाएँ आदि प्रकाशित।
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