निशीथ - 'निशीय एवं अन्य कविताएँ' में गुजराती साहित्य के विख्यात कवि श्री उमाशंकर जोशी की चुनी हुई कविताओं का हिन्दी रूपान्तर है, प्रधानतः उन कविताओं का जो 'निशीथ' नामक मूल गुजराती काव्यकृति में संगृहीत हैं। 'निशीथ' को देश के सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। भारतीय इतिहास के बीसवीं शती के पूर्वार्ध के जिस राष्ट्रीय चिन्तन और अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं की प्रतिक्रिया ने देश की मनीषा को जिस रूप में और जिन आयामों में प्रभावित किया है उसका मार्मिक प्रतिफलन इन कविताओं में मुखरित है। आदर्श और यथार्थ के बीच अद्भुत रूप से सन्तुलित, श्री जोशी का काव्य परम्परागत गीतात्मकता और निरी आशावादिता की सीमा से ऊपर उठकर मानव-वेदना के उदात्त शिखरों पर आरोहण करता है। और, जोड़ने वाली कड़ी के रूप में सर्व-रस-स्रोतिनी प्रकृति यदि उसी के काव्य से साक्षात् रूपायित न हुई होती तो कवि 'निशीथ' शीर्षक से सारे संकलन को अभिहित ही क्यों करता? मुख्य बात यह है कि इस संकलन के द्वारा आप जहाँ हिन्दी रूपान्तरण के सहारे काव्य-गत विषयवस्तु से परिचित होकर प्रभावित होंगे वहाँ देवनागरी लिपि में प्रकाशित इन मूल कविताओं के छन्द-शिल्प, रस-सौन्दर्य, गीति-माधुर्य और गुर्जर-धरा की सुरभि से अभिभूत एवं आनन्दित भी होंगे। प्रस्तुत है कृति का यह नवीन संस्करण।
उमाशंकर जोशी (1911-1988) - शिक्षा: बी.ए. (अर्थशास्त्र इतिहास), एम.ए. (गुजराती संस्कृत)। कार्यक्षेत्र: भूतपूर्व राज्यसभा सदस्य; स्नातकोत्तर अध्यापक, गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद (1939-46); प्राध्यापक एवं निदेशक, भाषा भवन, गुजरात विश्वविद्यालय (1954-72); उपकुलपति, गुजरात विश्वविद्यालय (1966-72), उपाध्यक्ष इंडियन पी.ई.एन. 1973, अमेरिका, रूस, चीन, जापान आदि अनेक पूर्वीय एवं पाश्चात्य देशों की यात्रा। सम्मान रणजितराम सुवर्ण चन्द्रक (1939), महींदा पुरस्कार (1944), नर्मद सुवर्ण चन्द्रक (1945), उमा-स्नेह रश्मि पुरस्कार (1966), नानालाल काव्य पुरस्कार (1968), साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1973) एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार (1967) से सम्मानित। कृतियाँ: कविता: विश्वशान्ति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसन्तवर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा। एकांकी: सापना भारा, शहीद। कहानी: श्रावणी मेणो, विसामो। उपन्यास: पारकां जण्यां। निबन्ध: गोष्ठी, उघाडी बारी। समीक्षा: अखो एक अध्ययन समसंवेदन, अभिरुचि, शैली अने स्वरूप, निरीक्षा, श्री अने सौरभ, कविनी साधना, प्रतिशब्द। शोध: पुराणोमां गुजरात, अखाना छप्पा। अनुवाद: शाकुन्तल, उत्तररामचरित, गुलेपोलांड। सम्पादन: क्लान्त कवि (बालाशंकर), म्हारा सॉनेट (बलवन्त राय), स्वप्नप्रयाण (हरिश्चन्द्र भट्ट), आनन्दशंकर ध्रुव के चार आलोचना ग्रन्थ (रा.वि. पाठक के साथ), मासिक पत्रिका संस्कृति (1947 से)।
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