पाकिस्तान का मतलब क्या - आज पाकिस्तान के बारे में जानने और समझने का मतलब अपनी पड़ताल करने जैसा है। आधे से अधिक समय बीत गया, जब इस्लाम धर्म और उर्दू के नाम पर पाकिस्तान बनाया गया था। आज वहाँ इस्लाम का क्या स्वरूप है और उर्दू की क्या हालत है यह देख कर पता चलता है कि लोकप्रिय भावनात्मक राजनीति हमें कहाँ ले जाती है। पाकिस्तान के सभी पहलुओं पर रोशनी डालती यह किताब कहीं निर्मम दिखती है तो कहीं आत्मीयता से भरपूर। पाकिस्तान की सत्ता, सेना, प्रशासन और सामाजिक परिदृश्य के माध्यम से एक देश के दर्द को भी बयां किया गया है जहाँ धर्म, भाषा और प्रान्तीयता के आधार पर हर साल न जाने कितना नर-संहार होता रहा है। सिविल सोसाइटी बुरी तरह विभाजित है। पर ऐसे हालात में भी बुद्धिजीवी, लेखक, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार बड़ी हिम्मत से जनहित में खड़े हुए हैं। इस यात्रा संस्मरण में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की तलाश करने की भी कोशिश है। पाकिस्तान के हिन्दू, ईसाई, अहमदिया समुदायों की स्थिति पर लेखक ने ध्यान दिया है। विभाजन की त्रासदी को लेखक ने फिर से समझने का प्रयास किया है। लाहौर, मुल्तान, कराची में लेखक ने विभाजन के पुराने दर्द को नये अन्दाज़ में पेश किया है। 'पाकिस्तान का मतलब क्या' पुस्तक पाठक को यह सोचने की दिशा देती है कि पाकिस्तान की तरफ़ देखने का नज़रिया बदलना चाहिए। पाकिस्तान न केवल महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है, बहुत बड़ा बाज़ार है बल्कि एक मज़बूत सांस्कृतिक कड़ी भी है जो हमारे वर्तमान और भविष्य को समझने के लिए अनिवार्य है।
"असग़र वजाहत हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक असगर वजाहत के अब तक सात उपन्यास, छह नाटक, पाँच कथा संग्रह, एक नुक्कड़ नाटक संग्रह और एक आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। उपन्यासों तथा नाटकों के अतिरिक्त उन्होंने महत्त्वपूर्ण यात्रा संस्मरण भी लिखे हैं। ईरान और अज़रबाइजान की यात्रा पर आधारित उनका यात्रा संस्मरण चलते तो अच्छा था चर्चा में रहा है। वर्ष 2007 में हिन्दी पत्रिका आउटलुक के एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें हिन्दी के दस श्रेष्ठ लेखकों में शुमार किया गया था। उनकी कृतियों के अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, रूसी, हंगेरियन, फ़ारसी आदि भाषाओं में हो चुके हैं। उन्होंने वी. वी. हिन्दी डॉट कॉम तथा 'हंस' जैसी पत्रिकाओं के लिए अतिथि सम्पादन किया है। उनके लेख हिन्दी के महत्त्वपूर्ण समाचारपत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। श्रेष्ठ लेखन के अतिरिक्त उनकी गहरी रुचि चित्रकला तथा फ़ोटोग्राफ़ी में भी है। उनकी दो एकल प्रदर्शनियाँ वुदापैश्त, हंगरी और दिल्ली में हो चुकी हैं। उनके चित्र पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। असगर वजाहत लम्बे समय से फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ लिख रहे हैं। उन्होंने 1976 में मुज़फ्फर अली की फ़िल्म 'गमन', उसके बाद 'आगमन' तथा अन्य फ़िल्में लिखी हैं। आजकल वे विख्यात निर्देशक राजकुमार संतोषी के लिए पटकथा लिख रहे हैं जो उनके नाटक जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ पर आधारित है। वे पटकथा लेखन कार्यशालाएँ भी आयोजित करते रहते हैं। अन्य सम्मानों के अतिरिक्त असगर वजाहत को उनके उपन्यास कैसी आगी लगाई के लिए कथा यू.के. द्वारा हाउस ऑफ़ लाईस लन्दन में सम्मानित किया जा चुका है। असगर वजाहत, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) नयी दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त वे बुदापश्त, हंगरी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्होंने ए. जे. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी काम किया है।"
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