शीला रोहेकर के इस उपन्यास में कई तरह के दुखों का साक्षात्कार है-अकेले होने का, महानगर में अजनबी होने का, रिश्तों के टूटने और छूटने का, प्रेम-संबंधों में आकर्षक के बाद तनाव, कड़वाहट, ईर्ष्या, उकताहट और छले जाने का। यह उपन्यास जहाँ टूटते सम्बन्धों की कड़वाहटों को सोखते जीवन के बिखरते जाने की पीड़ा को अपने में समाहित किये हैं, वहीं राजनीतिक, सामाजिक परिदृश्य के दिनोदिन और भयावह होते जाने का सच भी बयान करता है।
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