देवेन्द्र अहिरवार की कविताएँ वर्ण-वर्ग भेद की समस्त कृत्रिम संरचनाओं को बुनियादी तौर पर, एक्सक्लूसिव रेडिकली, एक सिरे से ख़ारिज करती हैं। ये कविताएँ मानवीय समाज व्यवस्था की विषमताओं-विभाजनों के अस्वीकार में उठे हुए कोमल लेकिन कसी मुट्ठियों की तरह हैं। ये कविताएँ अपनी समग्रता में जाति-प्रजाति, पंथ-सेक्ट वग़ैरह के निर्मूलन के पक्ष में हैं। ऐसी कृत्रिम-कुटिल बनावटों को एनिहिलेट करने का अपना बयान दर्ज़ करती कविताएँ।
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