इतिहासकारों के बीच पुरातनता और उसके काल-विभाजन की अवधारणा को लेकर हुए लंबे वाद-विवादों के परिणामस्वरूप आजकल ‘प्राचीन’ जैसे विशेषणों के प्रयोग में भारी कमी आ गई है और उसके स्थान पर ‘प्रारंभिक’ शब्द को अधिक तरजीह दी जाने लगी है। वैसे ‘प्राचीन’ में गहराई है, रहस्य और स्पंदन है। प्राचीन भारत की अवधारणा विचारों की बहुलता के साथ अतीत और साथ-ही-साथ ऐतिहासिक व्याख्या का एक मूलभूत हिस्सा है। इसलिए ‘प्राचीन भारत की अवधारणा’ पूरे भारत के, या कह सकते हैं दक्षिण एशिया के प्राचीन इतिहास को समझने के अनंत तरीकों से जोड़ती है। यह पुस्तक पुरालेखीय आँकड़ों के विश्लेषण और अभिलेखों को उनके विस्तृत संदर्भों में रखकर देखने के साथ पुरातत्व और प्राचीन स्थलों के आधुनिक इतिहास का भान कराती है। इसमें राजनीतिक विचारों एवं व्यवहार का संगम तो दिखता ही है, भारत से बाहर एशिया का दृश्यपटल भी परिलक्षित होता है।
उपिंदर सिंह अशोक विश्वविद्यालय (सोनीपत) के इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययन के बाद मैकगिल यूनिवर्सिटी, मॉन्ट्रियल से पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने 1981 से 2004 तक सेंट स्टीफेंस कॉलेज और उसके बाद 2018 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अध्यापन किया।
उपिंदर सिंहAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers