परित्यक्त - अमलेन्दु का 'परित्यक्त' उपन्यास सिर्फ़ कथा नहीं उससे परे अन्तर्तहों में एक कलात्मक फ़िल्म है स्मृतियों में। एक पेंटिंग है अपने धूसर रंगों में जीवन के मानी बताती। एक सांगीतिक रचना है जिसमें कई भूले रागों की यादों का कोलाज है। जीवन अपनी तरह का राग है जिसकी निजता नगरीय-महानगरीय संस्कृति में धूमिल हो जाती है लेकिन जड़ से समाप्त नहीं होती। एक सीमित दुनिया का वाशिंदा अमूमन अपनी ही दुनिया में होता है लेकिन वह जब एक बड़ी दुनिया में प्रवेश करता है तो अदृश्य का ज्ञान हृदय में क्रमशः मूर्त्त होता जाता है। इस उपन्यास के इस अभिप्रेत में सच की एक अखुली खिड़की है जिसमें से प्रकाश का साक्षात्कार है। यह कथा एक बच्चे की भीतरी आँख है, जो नम है। परिवार के जटिल परिपार्श्व में उसके अनुभव का जगत जो तमाम संघर्ष के बीच आकार पाता है। उसकी बचपन की कोमलता ख़त्म होती जाती है और वह समय के थपेड़ों में कठोर होता जाता है बाहर से अधिक भीतर। उसके भीतर का कवि ज़माने के साथ साहित्य में गोते लगाते हुए अपना होने का अर्थ ढूँढ़ता रहता है। कलाओं में ठौर पाने का जज़्बा और इन्सान होने की सलाहियत की खोज, इस उपन्यास का मर्म है। यह आरम्भ है एक नवोदित जीवन का। आरम्भ के सच की इस कथा को पाठक पढ़कर बेहतर जान पायेंगे।
अमलेन्दु तिवारी - जन्म: 10 अप्रैल, 1980; गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। सेंट एंड्रयूज डिग्री कॉलेज, गोरखपुर से बी.ए., एल.एल.बी, बाद में पुणे के सिम्बायसिस कॉलेज से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की शिक्षा। एसोसिएट मेम्बर, फ़िल्म एंड टेलीविज़न राइटर एसोसिएशन। आरम्भिक वर्षों में मुम्बई की एक लीगल फार्म में कार्यरत। तत्पश्चात एक एमएनसी बैंक में कुछ वर्षों की सेवा। साथ ही साथ आकाशवाणी मुम्बई, मुम्बई दूरदर्शन, प्राइवेट एफ.एम. चैनलों के लिए लेखन और अनुवाद। फ़िल्मों और टेलीविज़न के लिए लेखन। वर्तमान में साहित्य सेवा और स्वतन्त्र लेखन। 'परित्यक्त' पहला प्रकाशित उपन्यास।
अमलेनदु तिवारीAdd a review
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