दुनिया को उन्होंने ही गढ़ा है, जो धुन और संकल्प के धनी थे। जहाँ कोई गया नहीं, वहाँ से गुज़रते हुए अपने पदचिह्नों से राह बनायी। ऐसे ही लोगों ने संसार को अपने सृजन, कल्पना और मनोबल से पत्थर युग, कृषि युग, औद्योगिक युग, सूचना क्रान्ति से आगे बढ़ाते हुए प्रौद्योगिकी से हो रहे अविश्वसनीय बदलावों के द्वार तक आज पहुँचाया है। यह है, मानव ज़िद और संकल्प का चमत्कार! यह पुस्तक हर इन्सान ख़ासतौर से युवा पाठकों के लिए प्रेरक है, जो आसमान में असीमित छलाँग लगाने को आतुर हैं। सृजन का नया अध्याय लिखना चाहते हैं। हिन्दी पत्रकारिता के यशस्वी हस्ताक्षर हरिवंश ने इन प्रोफाइलों के माध्यम से उन जीवनियों के रोशनदानों को परत-दर-परत खोला है, जिनके सुनहरे योगदानों ने समय चक्र को अपने सृजन प्रयासों की किरणों से प्रकाशवन्त किया। गुजराती के प्रसिद्ध ग़ज़लकार हर्ष ब्रह्मभट्ट की लिखी पंक्तियाँ इन महान व्यक्तित्वों पर सटीक हैं- मेरे पैर के छालों से अगर कोई पूछे आकर, कहेंगे वो कि हमने तेरे दर के द्वार देखे हैं। " याद रखें, हर वह व्यक्ति जो अपने जीवन में बहुत निष्ठा और आस्था से अपने सपनों का पीछा कर रहा है, वह अपने क्षेत्र का लीडर है। इस बारे में नेपोलियन की सुन्दर उक्ति है 'लीडर इज़ डीलर इन होप’ (नेता वह सौदागर है, जो आशा में जीता है)। यही आशा उसे शिखर देती है। असाधारण व्यक्ति, वरेण्य होता ही है। लेकिन, जो साधारण होकर भी कुछ ऐसा कर जाता है कि देश और समाज में अपने पदचिह्नों को छोड़ता है, ऐसे ही आइकांस-व्यक्तित्वों से यह पुस्तक रू-ब-रू कराती है।"
हरिवंश - वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति, हरिवंश देश के जाने-माने पत्रकार रहे हैं। 30 जून, 1956 को बलिया (उ.प्र.) ज़िले के सिताबदियारा (दलजीत टोला) में जन्म। पिता स्व. बाँके बिहारी सिंह, माँ स्वर्गीया देवयानी देवी। आरम्भिक से लेकर माध्यमिक तक की शिक्षा गाँव के स्कूल में ही। आगे की पढ़ाई बनारस में। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.। वहीं से पत्रकारिता में डिप्लोमा। जे.पी. आन्दोलन सहभागी। लोकप्रिय पत्रिका ‘धर्मयुग’ से पत्रकारीय करियर की शुरुआत। चार दशकों तक सक्रिय पत्रकारिता। बैंकिंग सेवा में भी बतौर अधिकारी काम (1981-84)। जिन पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहे : 'धर्मयुग’ (1977-1981), 'रविवार' (1985-1989)। अक्टूबर, 1989 में राँची से प्रकाशित 'प्रभात ख़बर’ के प्रधान सम्पादक। प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (1990-1991)। बतौर प्रधान सम्पादक पुनः 'प्रभात ख़बर' में (1991-2016)। प्रमुख पुस्तकें : झारखण्ड : समय और सवाल, झारखण्ड : सपने और यथार्थ, झारखण्ड : अस्मिता के आयाम, झारखण्ड : सुशासन अब भी सम्भावना है, जोहार झारखण्ड, सन्तान हूल, झारखण्ड दिसुम मुक्तिगाथा और सृजन के सपने, बिहारनामा, बिहार : रास्ते की तलाश, बिहार : अस्मिता के आयाम, जन सरोकार की पत्रकारिता, शब्द संसार तथा दिल से मैंने दुनिया देखी। चन्द्रशेखर से जुड़ी पाँच किताबों का सम्पादन : चन्द्रशेखर के विचार, चन्द्रशेखर के बारे में, उथल-पुथल और ध्रुवीकरण के बीच (चन्द्रशेखर से संवाद भाग-1), रचनात्मक बेचैनी में (भाग-2), एक दूसरे शिखर से (भाग-3) तथा चन्द्रशेखर की जेल डायरी (दो भागों में)। अंग्रेज़ी में चन्द्रशेखर की जीवनी-द लास्ट आइकन ऑफ़ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स। अनेक देशों की यात्राएँ।
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