मिसेज देशमुख ने एक दिन मुझे उनके सामने ही खींच लिया था । देशमुख की उपस्थिति मुझे हताश कर रही थी। वे वृद्ध थे । “ऐसा है?" देशमुख को दिखाते हुए मिसेज देशमुख ने मेरा गुप्तांग हथेली में भरकर ऐसे उठाया था जैसे भाला उठाते हैं, फेंकने से पहले। देशमुख की आँख एकबारगी पूरी खुली थी, फिर मुँद गई थी। आँख की कोर से दो बूँद चू गई थी चुपचाप । मिसेज देशमुख ने भी देखा था। मिसेज देशमुख के चेहरे पर मैंने एक आध्यात्मिक सुकून देखा था । यह प्रतिशोध की आध्यात्मिकता। ऐसा ही आध्यात्मिक सुकून मैंने हमेशा बाबा के चेहरे पर भी पाया था। उस दिन उन्होंने मुझे ज्यादा पैसे दिए थे। मैंने चुपचाप पैसे रख लिए थे पर आँखों में सवाल चुपचाप नहीं बैठे थे। शायद उन्होंने वह इबारत पढ़ ली थी। “तुम मेरे प्रतिशोध में सहयोगी बने इसलिए।” वह बोली थी।
अजय नावरिया शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (जे.एन.यू.) जन्म : दिल्ली के एक गाँव कोटला मुबारकपुर में सम्पादन : 'हंस' के दलित विशेषांक (2004) में सहयोगी सम्पादक 'हंस' के 'नैतिकताओं का टकराव' (2005) में सम्पादन सहयोग 'डा. उदित राज के लेख' पुस्तक का स्वतन्त्र सम्पादन अन्य कार्य : एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य पुस्तक निर्माण समिति में मानद सदस्य सम्प्रति : अध्यापन और स्वतन्त्र लेखन सम्पर्क : 36/1179 द्वितीय तल, डी.डी.ए. फ्लैट्स मदनगीर, नयी दिल्ली-110062
अजय नवरियाAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers