‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ झारखंड के क शोषण-दमन और उससे उपजी सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों-विकृतियों को बेहद बारीकी से रेखांकित करती हैं। झारखंड के जनजीवन को संदर्भित करनेवाली ऐसी रचनाएँ और रचनाकार बहुत विरले हैं—हिंदी में तो और भी कम। दरअसल बहुत से रचनाकार यहाँ की जमीनी हकीकत से जुड़ ही नहीं पाते। संभवतः क मानसिकता के अवशेष उन्हें ऐसा करने नहीं देते। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ अश्विनी कुमार पंकज को उन रचनाकारों से भिन्न पाँत में खड़ा करती हैं—एक शिखर की तरह, नैदिन गार्डीमर की तरह। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियों का फलक बहुत विस्तृत है। इसमें एक ओर गिरिडीह-धनबाद की परित्यक्त कोयला-खदान हैं तो दूसरी ओर जादूगोड़ा का विकलांग-बाँझ कर देनेवाला प्रदूषित परिवेश। एक तरफ सिमडेगा, जलडेगा, बानो, मनोहरपुर के घाट-पहाड़, बाजार-हाट हैं तो दूसरी तरफ राँची-टाटा के चमचमाते फाइव-स्टार होटल। गरीबी और अमीरी का असह्य कंट्रास्ट। भाषा का रेंज भी उतना ही विस्तृत है, जितना इसका फलक। ठेठ गाँव-घर की हिंदी-नागपुरी से लेकर लेटेस्ट अंग्रेजी तक—‘चेंज योर माइंड इन राइट डायरेक्शन।’ अतिरिक्त प्रयास के बिना कथ्य के साथ सादा-सा शिल्प सहज रूप से कहानियों में आया है। एक नैसर्गिक आदिवासी परिवेश का प्रस्तुतिकरण सादगी-मौलिकता- सहजता के साथ। —विसेश्वर प्रसाद केशरी.
अश्विनी कुमार ‘पंकज’ 1964 में जन्म। डॉ. एम.एस. ‘अवधेश’ और दिवंगत कमला की सात संतानों में से एक। कला स्नातकोत्तर। 1991 से जिंदगी और सृजन के मोर्चे पर वंदना टेटे की सहभागिता। झारखंड एवं राजस्थान के आदिवासी जीवनदर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और इतिहास पर विशेष कार्य। उलगुलान, संगीत, नाट्य दल, राँची के संस्थापक संगठक सदस्य। 1987 में रंगमंच की त्रैमासिक पत्रिका ‘विदेशिया’ और 1995 में ‘हाका’ का संपादन। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’, ‘इसी सदी के असुर’, ‘सालो’ और ‘अथ दुड़गम असुर हत्या कथा’ (कहानी-संग्रह); ‘जो मिट्टी की नमी जानते हैं’ और ‘खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ (कविता-संग्रह); ‘युद्ध और प्रेम’ और ‘भाषा कर रही है दावा’ (लंबी कविता); ‘अब हामर हक बनेला’ (हिंदी कविताओं का नागपुरी अनुवाद); ‘छाँइह में रउद’ (दुष्यंत की गजलों का नागपुरी अनुवाद); ‘एक अराष्ट्रीय वक्तव्य’ (विचार); ‘नागपुरी साहित कर इतिहास’ (भाषा-साहित्य); ‘रंग बिदेसिया’ (भिखारी ठाकुर पर, सं.); ‘उपनिवेशवाद और आदिवासी संघर्ष’ (सं.); ‘आदिवासी और विकास का भद्रलोक’ (सं.) एवं ‘माटी माटी अरकाटी’ (उपन्यास) आदि प्रकाशित पुस्तकें।
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