Police Vyavastha Par Vyangya

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राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ‘वरदीधारियों’ की एक ही जाति हुआ करती थी। सरकारी भाषा में उसे ‘सिपाही’ कहा जाता था। लेकिन यह ‘अंगे्रज श्री’ के भारत आने से पहले की बात है। अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ‘विभाजन-प्रिय’ लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ‘सिपाही जाति’ का रातोरात विभाजन कर दिया। उन्होंने इस जाति में से एक और प्रजाति निकाली, जिसका नाम रखा ‘पुलिस’। विभाजन के बाद इनके कार्यक्रम अलग-अलग हो गए। सिपाही शत्रु के विरुद्ध युद्ध छिड़ने के अवसर पर मोरचा सँभालते हैं, तो पुलिस अपने लोगों के बीच लड़ाई के अवसर पर। पहला लड़ने का काम करता है तो दूसरा लड़ाने का। और आप भलीभाँति जानते हैं कि लड़ने से कहीं अधिक मुश्किल काम है लड़ाने का। बचपन में हम एक कहावत सुनते थे, ‘भाग रे सिपाही, चोर आया’। तब हम नहीं समझते थे कि चोर के आने पर सिपाही का भाग जाना क्यों आवश्यक है! लेकिन अब समझते हैं और खूब समझते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पुलिस-तंत्र विकास की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चोरों की दिलेरी और पुलिस की फरारी बढ़ रही है। इस झंझट से मुक्त होते हुए फिलहाल हम यह मुकदमा उन बुद्धिजीवी लेखकों के सुपुर्द करते हैं, जो इस सिद्धांत को नहीं मानते और पुलिस के अंदर झाँकने का बार-बार प्रयास करते हैं। आप इनसे मिलिए और पुलिस का चिट्ठा पढि़ए। तिल-तिलकर तिलमिलाने और हास्य स्थलों पर ठहाका लगाने को विवश करते हैं ये व्यंग्य।.\n\n

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Giriraj Sharan

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