पूर्वज - \nलेखक का पहला कहानी-संग्रह होने के बावजूद 'पूर्वज' विषय, शिल्प तथा भाषा के सभी स्तरों पर उपस्थित एक विविधता के कारण आकर्षित करता है। युवा कहानीकार के रूप में जो चीज़ श्रीकान्त को सबसे अलग खड़ा करती है वह है पुस्तक की छह की छह कहानियों में उनका किसी भी तरह की पुनरावृत्ति से सफलतापूर्वक बच जाना। हरेक कहानी को वह एक मुक़म्मल तैयारी के साथ शुरू करते हैं और कसे हुए प्रवाह के साथ अंजाम तक पहुँचाते हैं।\nसंग्रह की कहानियों को सम्भवतः उनके लिखे जाने की क्रमिकता में व्यवस्थित किया गया है, जहाँ से यह ज़ाहिर होता है कि श्रीकान्त का लेखक अपने पहले ही प्रयास (पहली कहानी : दहन) में एक परिपक्व कहानीकार है, तथा आगे की कहानियों का बुना जाना देश-काल और संघर्षों की टकराहट के साथ उनकी विचारधारा तथा सरोकारों में आये बदलाव का नतीजा भर है।\nश्रीकान्त की नज़र समय के समानान्तर बदल रही दुनिया पर निरन्तर एक चौकसी के साथ टिकी रहती हैं और एक सलाहियत के साथ उसे बयाँ करती है। यही वजह है कि दो दशक पहले के गाँव की धीमी रफ़्तार, ज़िन्दगी में दम घोंट दी जाने वाली मारक महत्त्वाकांक्षा तथा मनुष्य का यान्त्रिकीकरण कर देने वाले कॉरपोरेट जगत की शालीन हिंसा तक उनकी कहानियों के विषय बनते हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी 'पूर्वज', लेखक द्वारा एक सदी जितने लम्बे कालखण्ड को कहानी भर में समेट सकने के अलग ही तरह की सामर्थ्य का मुज़ाहिरा है। श्रीकान्त के इस कहानी-संग्रह को युवा रचनाशीलता के सशक्त होने के सबूत के साथ एक सम्भावनाशील भविष्य की दस्तक भी माना जाना चाहिए।
श्रीकान्त दुबे - जन्म: 1 जनवरी, 1988 को गोरखपुर ज़िले के पचदेवरी गाँव में। आरम्भिक शिक्षा गोरखपुर के विभिन्न विद्यालयों में। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस से स्नातक। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से मीडिया और रचनात्मक लेखन की पढ़ाई तथा बैंगलोर से स्पैनिश भाषा का अध्ययन। सम्प्रति स्पैनिश भाषा और साहित्य का अध्ययन-अनुवाद, स्वतन्त्र लेखन। हिन्दी की सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ, अनुवाद, समीक्षाएँ तथा लेख प्रकाशित। 'कल के लिए' पत्रिका द्वारा आयोजित 'गजानन माधव मुक्तिबोध प्रतियोगिता-2008' में प्रथम पुरस्कार।
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