पूर्णावतार - \n\nतात!\nक्या सम्राट होना ही सब कुछ है? \nमैं अनिंद्य सुन्दरी राजकुमारी थी \nमेरी भी कुछ आकांक्षाएँ थीं \nपर हार गयी क्योंकि में नारी थी\n\nकुछ भी कहो देव!\nआपके समक्ष मैं तो नादान हूँ \nक्या कर सकती थी असहाय नारी \nइस क्रीड़ा में कन्दुक थी मैं तो बेचारी\n\nनेत्र चाहे बन्द हों या खुले \nहम वे ही देख पाते हैं जो देखना चाहते हैं। \nकोई अन्धा नहीं है यहाँ \nन तात धृतराष्ट्र \nन गान्धारी माते आप \nदोनों समझते थे अपने-अपने पाप\n\nबलशाली होना भी अन्धापन है \nशस्त्र के बल पर मनमानी करना \nदुर्बल को सताना\nसिर्फ़ अन्धापन है। \nगान्धारी यह तुम्हारा नहीं \nगान्धार देश का अपमान है \nनारी जाति का अपमान है\n\nक्या बचा है मेरे पास\nअभिशाप बन जीना होगा \nन मर पाने का विष पीना होगा \nतरसूँगा पर मृत्यु नहीं पाऊँगा \nभटकते रहने की पीड़ा \nकब तक सह पाऊँगा ?\n\nठीक कहते हो प्राण!\nतुम तो अन्धे थे \nमैंने भी किया मर्यादा का पालन \nपतिधर्म का व्रत, \nशपथ ली मैंने - \nअन्धे व्यक्ति की पत्नी अन्धी ही रहेगी \nयह मर्यादा युग-युग तक चलेगी \nपति चाहे जैसा हो \nपत्नी तो अन्धी ही रहेगी। \n\n-हेतु भरद्वाज
हेतु भारद्वाज - 15 जनवरी, 1937, रामनेर (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), पीएच.डी., राजस्थान वि.वि.। व्यवसाय: राजस्थान उच्च शिक्षा में शिक्षण। कृतियाँ : नौ कहानी-संग्रह- तीन कमरों का मकान, ज़मीन से हटकर, चीफ़ साथ आ रहे हैं, तीर्थयात्रा, सुबह-सुबह, रास्ते बन्द नहीं होते, समय कभी थमता नहीं आदि, एक उपन्यास बनती बिगड़ती लकीरें, व्यंग्य संग्रह-छिपाने को छिपा जाता और नाटक- आधार की खोज के अलावा मुख्य रूप से आलोचना सम्बन्धी कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं : राष्ट्रीय एकता और हिन्दी, स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कहानी में मानव प्रतिमा, परिवेश की चुनीतियाँ और साहित्य, संस्कृति और साहित्य, हिन्दी कथा साहित्य का इतिहास, आधुनिक हिन्दी कविता का विकास, हिन्दी साहित्य का इतिहास- 730 ई. से 1750 ई., संस्कृति, शिक्षा और सिनेमा, संस्कृति संवाद, हमारा समय सरोकार और चिन्ताएँ, साहित्य और जीवन के सवाल, दो संस्मरण संग्रह- जो याद रहा तथा बैठे ढाले की जुगालियाँ तथा विश्वम्भरनाथ उपाध्याय पर केन्द्रीय साहित्य अकादेमी से मोनोग्राफ़ आदि दो दर्जन से अधिक पुस्तकें। सम्पादित पत्रिकाएँ : आज की कविता (1961 में चार अंक); तटस्थ (त्रैमासिक) नवम्बर, 1969 से अप्रैल, 1970; मधुमती (मासिक) अक्टूबर, 1989 से नवम्बर 1990 तथा 1998 में; समय माजरा (मासिक) जनवरी, 2000 से दिसम्बर 2005; अक्सर (त्रैमासिक) जुलाई, 2007 से नियमित पंचशील शोध समीक्षा (त्रैमासिक हिन्दी शोध पत्रिका) अप्रैल, 2008 से 2014। अन्य प्रतिनिधि कहानियाँ- 1984, 1985, 1986, 1987 का सम्पादन, तपती धरती का पेड़ (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के लिए राजस्थान के कहानीकारों की कहानियों का संकलन), कविता का व्यापक परिप्रेक्ष्य (नन्द चतुर्वेदी, ऋतुराज, नन्द किशोर आचार्य, विजेन्द्र की कविता के सवालों पर खुली बातचीत), राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के अध्यक्ष रहे आदि।
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