मानव जंगलीपन से आगे बढ़ता है तो धर्म से जुड़ता है। धर्म की पराकाष्ठा है। भारत में धर्म की परिभाषा है-चिरन्तन सत्ता सर धर्मों का मुल्य केवल शान्ति है. वहीं भारतीय धर्म में सत्. चित् और आना सरिदा का मूल है भाईचारा (धारयतीति धर्मः) की कामना (यतोऽभ्युदयनिः श्रेयससिद्धिः इसकी धर्मः)। जहां दूसरे धर्म सीमित भौतिकता से जुटे आध्यात्मिकता से जुड़ा है। यहां किसी भी सम्प्रदाय का की कल्पना है। यहां धर्म अभ्युदय और कल्याण आचार है (आचारो सार्वभौमिकता एवं पालना न मानने वाला सभी इसका अंग हैं। यही है मोक्ष का सही मार्ग सोचकर मनातन धर्म सबका जो था और आगे भी रहेगा। युग बदले, पूजा पद्धतिल और समाप्त हुए पर सोच, आधार और मानक अपरिवर्तित रहे। इससे सना है। पर यहां धर्म के नाम पर कभी किसी पर कुछ भी थोपा नहीं गया। स सारे द्वार खुले हैं। इसीसे बिना दबाव के सभी धर्म विकसित होकर अंत में इसकी मूल धारा में जुटते गए। इन्हीं पंथो, सम्प्रदायों के सिद्धान्त और उनके ऐतिहासिक विकास को प्रस्तुत करना इस प्रयास का उद्देश्य है। यदि यह लक्ष्य पूरा हो सका तो यही हमारी सफलता है।
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