प्रार्थनारत बत्तखें - \nकिसी भी दौर की समकालीनता एकायामी नहीं होती। उसके पाँव में कई राग-रंग, धुँधले पड़ चुके कई हर्फ़ झिलमिलाते रहते हैं। युवा कवि तिथि दानी ढोबले के संग्रह 'प्रार्थनारत बत्तखें' को पढ़ते हुए हम इसी तरह की बहुआयामी समकालीनता से बावस्ता होते हैं।\nऐसे समय में जब डर ही चेतना का केन्द्र होने लगे और 'डरे हुए लोग' ही समाज की धुरी, इस डर को निकाल देना आसान नहीं होता, परन्तु एक युवा कवि ताज़गी और अनुकूलन से मुक्त आवास से इस डर को चुनौती देता है। उसका यह कहना 'प्रेम भरी नज़रें कभी विस्मृत नहीं करता सौन्दर्यबोध' हमारे भीतर उत्साह और प्रेम का संचार करता है।\nइधर की हिन्दी कविता विशेषकर युवा कविता के सन्दर्भ में ये शिकायत की जाती है कि उसमें मनुष्य और प्रकृति का आदिम राग सुनाई नहीं देता। तिथि की कविताओं में प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों को वर्तमान के धरातल पर पहचानने की कोशिश नज़र आती है। प्रकृति और मनुष्य के आदिम राग को गाते हुए वह अपने समय और समाज को नहीं भूलती। वह अपने भीतर यह 'उम्मीद' बचाये रखती हैं कि 'स्त्रियाँ जुगनू बन जायें'। उम्मीद का यह उत्कर्ष हमें सुकून से भर देता है।\nये कविताएँ प्रेम और सौन्दर्य को अलगाती नहीं। वे दोनों के बीच मौजूद बारीक़ से बारीक़ भेद को भी मिटा देना चाहती है। दुनिया के शोर, भागदौड़, छीना-झपटी के बीच 'प्रार्थनारत बत्तखें' का रूपक हमें हर तरह की नृशंसता और दमन के प्रति प्रेम और सौन्दर्य के वैकल्पिक रास्ते की ओर मोड़ देता है। एक ऐसे रास्ते पर जहाँ लोग अपने भीतर और बाहर के दर्द को विस्मृत कर 'प्रार्थनारत बत्तखों' के संगीत में खो जाते हैं।\nतिथि दानी की कविताएँ रूमानियत और कल्पना की एक ऐसी भाव-भूमि पर खड़ी नज़र आती हैं जो प्रति-यथार्थ का सौन्दर्यबोध हमारे भीतर जगाती हैं। इसी अलहदा ज़मीन पर खड़ी होकर वे कहती हैं 'मैं शिद्दत से ढूँढ़ रही हूँ रोटी के जैसी गोलाई'। इन कविताओं से गुज़रना अपने भीतर के असुन्दर से संघर्ष करना है। ये प्रार्थनाएँ हमारे भीतर सुन्दर दुनिया का विवेक जगाती हैं।—अच्युतानन्द मिश्र
तिथि दानी ढोबले - जन्म: जबलपुर (मध्य प्रदेश) में। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य), बेचलर ऑफ़ जर्नलिज़्म, पीजी डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन। अब तक परिकथा, पाखी, शुक्रवार, अक्षरपर्व, वागर्थ, लमही, पूर्वग्रह, लोकस्वामी, सनद, संवदिया, नेशनल दुनिया, दैनिक भास्कर, पीपुल्स समाचार, जनसन्देश टाइम्स, जनसत्ता साहित्य विशेषांक, दुनिया इन दिनों-साहित्य वार्षिकी-2, समावर्तन का रेखांकित स्तम्भ, देश की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'पहल', समय के साखी आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानी, लेख प्रकाशित। सिताबदियारा, पहली बार ब्लॉग पर भी कविताएँ। दूरदर्शन और आकाशवाणी में रचनाओं का पाठ। राजस्थान पत्रिका में साक्षात्कार प्रकाशित। भारतीय उच्चायोग (लन्दन) द्वारा साहित्यिक उपलब्धि हेतु मानपत्र तथा प्रकाशन हेतु अनुदान प्राप्त। लम्बे समय तक जबलपुर के अनेक महाविद्यालयों में अध्यापन, आकाशवाणी में कम्पियरिंग, 'मनी मन्त्र', 'बिन्दिया' पत्रिकाओं के बाद पी-7 न्यूज़ चैनल और फिर नयी दुनिया में पत्रकारिता। फ़िलहाल ऐकॉर होटल्स श्रृंखला की मक्यूरी जॉर्ज होटल में इंडियन शेफ़ के तौर पर कार्यरत और स्वतन्त्र लेखन जारी।
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