प्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्य - \nप्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्य फीजी, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका तथा मॉरिशस के प्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्य का पहला प्रामाणिक और अनुसन्धान परक संचयन है जो इन देशों की सृजनात्मक रचनाओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत करता है। ग्रन्थ में संगृहीत रचनाएँ गिरमिट जीवन की दारुण परिस्थितियों का वर्णन करनेवाली जहाँ है वहीं इन देशों में बसे हुए गिरमिटियों की चौथी पीढ़ी के भारतीयों की संवेदनाओं और उनकी सृजनात्मक प्रतिभाओं का निदर्शन भी हैं।\nग्रन्थ में संकलित अनेक रचनाएँ इन देशों में बसे हुए भारतीयों द्वारा विकसित हिन्दी की विशिष्ट भाषिक शैलियों में लिखी हुई रचनाएँ हैं जो हिन्दी के वैश्विक स्वरूप का आपको परिचय देंगी। प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादक और सह-सम्पादक प्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्य के अध्ययन और अनुसन्धान से दीर्घ काल तक सम्बद्ध रहे हैं और विषय के विशेषज्ञ हैं।
विमलेश कान्ति वर्मा - डी.फिल. (इलाहाबाद), एफ.आर.ए.एस. (लन्दन), प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक, दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले 50 वर्षों से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, पाठालोचन तथा अनुवाद शास्त्र का अध्यापन, तीन दशकों से भी अधिक समय से प्रवासी भारतीय हिन्दी साहित्य का अध्ययन और अनुसन्धान। 'फीजी में हिन्दी : स्वरूप और विकास', 'फीजी का सृजनात्मक हिन्दी साहित्य' तथा 'सूरीनाम का सृजनात्मक हिन्दी साहित्य' के लेखक सम्पादक। हिन्दी भाषा अध्ययन और अनुसन्धान के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा महापण्डित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, विदेश में हिन्दी प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त 'हिन्दी विदेश प्रसार सम्मान' से सम्मानित। दो बार बलगारिया सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कारों— '1300 बल्गारिया' तथा 'ज़्लातना लावरोवा क्लोंका' पुरस्कारों से सम्मानित।
डॉ. विमलेश कांति वर्माAdd a review
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