प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रखर चिन्तक डॉ. दंगल झाल्टे ने प्रस्तुत कृति में प्रयोजनमूलक हिन्दी के न केवल विविध पहलुओं एवं प्रयोग के अलक्षित सन्दर्भों को पूरी संश्लिष्टता से विश्लेषित किया है, अपितु इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयोजनमूलक हिन्दी के सिद्धान्तों का निर्माण कर उसे वैज्ञानिकता प्रदान करने का गुरुतर कार्य भी किया है।\nसमृद्ध प्रयोजनीय परम्परा तथा प्रयोगधर्मिता के अन्तश्चेतन स्फुल्लिंग को प्रदीप्त करती हुई हिन्दी जब बहुभाषी स्वतन्त्र भारतवर्ष की राजभाषा के महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन हुई तब उसे सर्वथा नये भाषिक दायित्वों के निर्वाह स्वस्थ ज्ञान-विज्ञान के अनेक अनछुए क्षेत्रों की अभिव्यक्ति का शक्तिशाली माध्यम बनने की आवश्यकता महसूस हुई। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास तथा बदली हुई स्थितियों में हिन्दी की प्रयोजनशील भाषागत संरचना को जनसम्पर्क, सरकारी कार्य तथा प्रशासन के बहुआयामी प्रयोजनों हेतु नयी भाषाभिव्यक्ति और नूतन प्रयोग विधियों के आविष्करण का डॉ. झाल्टे का यह वैज्ञानिक विद्वत् प्रयास निश्चय ही चिन्तन के नये आयाम उद्घाटित करने में सफल होगा।
दंगल झाल्टे जन्म : 9 जून, 1954 जलगाँव (महाराष्ट्र) जिले के अमलनेर तहसील के अन्तर्गत हेडावे गाँव के एक ठेठ किसान मराठा परिवार में मातृभाषा अहिराणी-मराठी । शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा प्रताप कॉलेज, अमलनेर, तदुपरान्त पुणे में। हिन्दी, संस्कृत तथा विधि की अनेक उच्च डिग्रियाँ और स्नातकोत्तर उपाधियाँ प्राप्त । प्रखर चिन्तक एवं तेज़-तर्रार प्रभावी वक्ता के रूप में बहुचर्चित । शैक्षिक, लेखकीय तथा सामाजिक कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित । कार्य : राजभाषा अधिकारी, विश्वविद्यालय प्राध्यापक, उप-निदेशक तथा राजभाषा प्रभाग प्रमुख के रूप में कार्य । हिन्दी की राष्ट्रीय स्तर की सरकारी शोध पत्रिका के सम्पादक के रूप में भी कार्य । प्रकाशित ग्रन्थ : रेसकोर्स (काव्य संकलन), दिल्ली ते मास्को (मराठी काव्य संकलन), कौओं की पाठशाला (काव्य संकलन), उपन्यास समीक्षा के नये प्रतिमान, नये उपन्यासों में नये प्रयोग, प्रयोजनमूलक हिन्दी, राष्ट्रीयकृत बैंकों में हिन्दी प्रयोग तथा बैंकिंग हिन्दी पर कुल छह पुस्तकें, भारतीय साहित्य और समीक्षा (सं.), हिन्दी भाषा और साहित्य (सं.), वाग्विकल्प (सं.) ।
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