प्रीत के रंग - \nसर्जना मानसिक उद्वेगों की जननी है। जब व्यक्ति के अन्तर्मन में तरह-तरह की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं तो उन्हें शब्द और लेखनी के माध्यम से प्रस्फुटन की एक ऐसी भावभूमि मिलती है जिसमें वह यात्रा करते हुए कई बार डूबता-उतरता है। अन्ततः उसकी नाव एक किनारे जाकर स्थिर हो जाती है। शब्द शिल्प की यह यात्रा जब आकार लेती है तो स्वयमेव सृजन का सुदीर्घ वितान समुपस्थित हो जाता है और सर्जक उसकी आन्तरिक अनुभूतियों में कहीं खो-सा जाता है।\nकाव्य लेखन हो या गद्य, उसमें अपने अनुभवों और भावनाओं को अपनी इच्छा के अनुसार ढलते देखने की एक सुखद अनुभूति है। व्यक्ति के समक्ष जब कोई बात स्पष्टतया कहने का अवसर सुलभ नहीं होता तो लेखनी उसका माध्यम बनकर उसे शब्दशः रूपायित करने का मार्ग प्रशस्त कर देती है। और वे अनुभूतियाँ भविष्य के लिए सुरक्षित होकर अन्तर्द्वन्द्व या कभी-कभी सन्त्रास की स्थिति में आत्म सम्बल बनकर उसे सहारा देती हैं।\nप्रस्तुत काव्य-चेतना प्रीत के रंग में ऐसी ही अनेक अनुभूतियों को शब्द देने की एक ऐसी सहज-असहज पृष्ठभूमि तैयार हो गयी जिसे 'जो जैसा था' के भाव से ही अभिव्यक्त है।
डॉ. अलका बाजपेयी 'समिधा' जन्म : 7 मई, 1972 शैक्षिक योग्यता : एम.ए. (अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र) तथा आयुर्वेदाचार्य। विशिष्ट कार्य क्षेत्र : लेखन, गीत, ग़ज़ल, गद्यकाव्य, नृत्य नाटिका व नाट्य कथाओं का पटकथा-लेखन। व्यवसाय : फाउंडर डायरेक्टर, विभू एजुकेशनल सोशल एंड कल्चरल सोसाइटी, लखनऊ। भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित संस्था : विभू इन्स्टीट्यूट ऑफ़ परफार्मिंग आर्ट्स (VIPA) का संचालन। ★ गीत, ग़ज़ल, गद्यकाव्य, नृत्य नाटिका व नाट्य कथाओं का पटकथा-लेखन। ★ बच्चों में प्रतिभा की तलाश व विकास हेतु विभिन्न प्रतियोगिताओं, कार्यशालाओं व कार्यक्रमों का आयोजन। ★ संस्था के वार्षिक उत्सव के रूप में कई वर्षों से 'नटखट उत्सव' का आयोजन। बच्चों के उत्साहवर्धन के लिए पुरस्कार व स्कॉलरशिप आदि का प्रबन्धन तथा बच्चों में विश्वस्तरीय प्रतिभा का विकास करने हेतु निरन्तर प्रयत्नशील। विभिन्न सामाजिक कार्यों हेतु समर्पित।
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