Prem Ki Bhootkatha

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प्रेम की भूतकथा' मसूरी के इतिहास में लगभग विलुप्त हो चुके एक विचित्र घटना क्रम से उत्पन्न अत्यन्त पठनीय उपन्यास है। एक शताब्दी पहले मसूरी में माल रोड पर एक केमिस्ट की दुकान में काम करनेवाले जेम्स की हत्या हुई थी। जेम्स की हत्या के लिए उसके दोस्त सार्जेन्ट मेजर एलन को दोषी पाया गया। 1910 में एलन को फाँसी हुई। लेकिन क्या सचमुच एलन अपने दोस्त जेम्स का हत्यारा था! क्या जेम्स की क़ब्र पर अंकित यह वाक्य ठीक है, 'मर्डर्ड बाई द हैंड दैट ही बीफ्रेंडेड'। ऐसे अनेक प्रश्नों और उनके बहुतेरे आयामों की पड़ताल करता उपन्यास 'प्रेम की भूतकथा' हिन्दी कथा साहित्य में एक अनोखी रचना है। अनोखी इसलिए क्योंकि इस रहस्यगाथा के सूत्र एक प्रेमकथा में निहित हैं। यह प्रेमकथा है मेजर एलन और मिस रिप्ले बीन की।\n\nहत्या की तारीख़ 31 अगस्त, 1909 का पूरा विवरण एलन से कोई नहीं जान सका। न पुलिस और न फ़ादर कैमिलस। फ़ादर के सामने एलन ने जैसे नीमबेहोशी में कहा, 'आप जिसे प्यार करते हैं उसे रुसवा कर सकते हैं क्या?' अपनी फाँसी से पहले एलन ने एक काग़ज़ पर लिखा था, 'नो रिग्रेट्स माई लव।' एलन के एकान्त में समाप्त सी मान ली गयी एक संक्षिप्त किन्तु समृद्ध-सम्पन्न प्रेमकथा का उत्खनन विभूति नारायण राय ने बहुआयामी भाषा और अनूठे शिल्प के माध्यम से किया है। एलन और रिप्ले बीन के बीच उपस्थित प्रेम को पढ़ना एक दुर्निवार आवेग से साक्षात्कार करना है।\n\n'प्रेम की भूतकथा' में विभूति नारायण राय ने एक ताज़ा कथायुक्ति का सफल प्रयोग किया है। निकोलस, कैप्टन यंग और रिप्ले बीन के भूत कथानक का विस्तार करते हुए उसे तर्कसंगत निष्पत्तियों तक पहुँचाते हैं। एक गहरे अर्थ में यह समय के दो आयामों का संवाद है। समय के सामने मिस रिप्ले बीन का भूत स्वीकार करता है, 'लड़की कायर थी। कितना चाहती थी कि चीख़-चीख़कर दुनिया को बता दे कि एलन हत्यारा नहीं है पर डरती थी।' विक्टोरियन नैतिकता के विरुद्ध रिप्ले बीन का यह दबा-दबा विलाप वस्तुतः किसी भी समय और समाज में सक्रिय प्रेम विरोधी नैतिकताओं को कठघरे में खड़ा कर देता है।\n\nविवरणों, मनोभावों और अन्तःकथाओं को विभूति नारायण राय ने भाषा की विविध छवियों के साथ रचा है। एलन अपने प्रेम का स्मरण करता है, 'कल उस चौड़े छतनार हार्स चेस्ट नट के दरख़्त के नीचे जब तुम पिघल रही थीं तब अचानक मेरी गर्दन में नाखून गड़ा कर क्या तुम चीख़ी थीं? याद है तुम्हें? मेरी स्मृतियों में टँक गयी है वह अस्फुट पर तेज़ ध्वनि। नीचे पतझड़ था और हमारे शरीरों में बसन्त फूट रहा था।' मानव मन की जाने कितनी अन्तर्ध्वनियों को शब्दबद्ध करता प्रस्तुत उपन्यास समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाएगा। प्रेमकथा के नायक एलन के लिए ही शायद फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा था, 'न रहा जुनूने रुख़े वफ़ा/ये रसन ये दार करोगे क्या / जिन्हें जुर्मे इश्क़ पे नाज़ था वे गुनहगार चले गये।'\n\n—सुशील सिद्धार्थ

विभूति नारायण राय - जन्म : 28 नवम्बर 1950 शिक्षा : मुख्य रूप से वनारस और इलाहावाद में। 1971 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद आजीविका के लिए विभिन्न नौकरियाँ कुछ साल अध्यापन के वाद 1975 में भारतीय पुलिस सेवा के लिए चयनित। तीन दशकों से अधिक पुलिस की सेवा के बाद पाँच वर्ष तक महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति रहे और जनवरी 2014 में अन्तिम सेवानिवृत्ति के साथ अव नोएडा में रहते हैं। फ़िलहाल कुछ पत्र-पत्रिकाओं में कॉलमों के साथ स्वतन्त्र रचनात्मक लेखन । प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : घर, शहर में कर्फ्यू, क़िस्सा लोकतन्त्र, तबादला, प्रेम की भूतकथा, रामगढ़ में हत्या; व्यंग्य : एक छात्र नेता का रोज़नामचा; लेख-संकलन : साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस, रणभूमि में भाषा, फ़्रेंस के उस पार, किसे चाहिए सभ्य पुलिस, पाकिस्तान में भगत सिंह, अन्धी सुरंग में काश्मीर, राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले; रिपोर्ताज : हाशिमपुरा 22 मई । सम्पादन : लगभग दो दशकों तक हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिका 'वर्तमान साहित्य' और पुस्तक कथा साहित्य के सौ बरस (बीसवीं शताब्दी के कथा साहित्य का लेखा-जोखा) का सम्पादन ।

विभूति नारायण राय

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