प्रेमचन्द के फटे जूते - \nहिन्दी के प्रख्यात व्यंग्यकार, कथाकार एवं लेखक हरिशंकर परसाई (1924-1995) की व्यंग्य-रचनाएँ स्वतन्त्र भारत का असली चेहरा हैं। उनकी रचनाओं को देखने पर पता चलेगा कि वे स्वतन्त्रता के बाद भारतीय समाज को गढ़ने और तोड़ने वाली सारी घटनाओं को तीव्रता से देख-परख रहे थे। वे भीतरी पोल को समझ रहे थे और साथ ही उन सभी मामलातों में सजग और स्फूर्त थे। उनके लेखन ने कभी धोखा नहीं खाया। उनके जैसा रचनात्मक जोख़िम उठाने वाले लेखक समकालीन समाज में विरले थे।\n'प्रेमचन्द के फटे जूते' परसाई का प्रतिनिधि संचयन है। इन रचनाओं में परसाई ने अपने युग के समाज का, उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का उद्घाटन किया है। उनकी रचनाओं में हँसी से बढ़कर जीवन की तीखी आलोचना है।\nहरिशंकर परसाई को दिवंगत हुए अब जबकि काफ़ी समय गुज़र गया है, स्पष्ट रूप से उनकी रचनाओं पर बहुत गम्भीर विमर्श हो सकता है।\nभारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनके अन्य दो व्यंग्य-संग्रह हैं— 'सदाचार का तावीज़' और 'जैसे उनके दिन फिरे'। दोनों अद्वितीय।
जन्म: 22 अगस्त, 1924। जन्म-स्थान: जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)। मध्यवित्त परिवार। दो भाई, दो बहनें। स्वयं अविवाहित रहे। मैट्रिक नहीं हुए थे कि माँ की मृत्यु हो गई और लकड़ी के कोयले की ठेकेदारी करते पिता को असाध्य बीमारी। फलस्वरूप गहन आर्थिक अभावों के बीच पारिवारिक जिम्मेदारियाँ। यहीं से वास्तविक जीवन संघर्ष, जिसने ताकत भी दी और दुनियावी शिक्षा भी। फिर भी आगे पढ़े। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.। फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’। प्रकाशित कृतियाँ: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर (सा.अ. पुरस्कार); तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध-संग्रह)। रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में। ‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में रचनाएँ संकलित। निधन: 10 अगस्त, 1995
हरिशंकर परसाईAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers