‘नाटक जारी है’ की समृद्ध मिज़ाजी और 'इस यात्रा में' की आत्मीय दुनिया के बाद इस संग्रह में लीलाधर जगूड़ी के अनुभव और शब्द अधिक दुविधारहित हुए हैं। इनमें कतई आत्मनिन्दा नहीं है और निरी आक्रामकता भी नहीं; मगर वह है जो शायद आक्रामक होने का जनवादी विवेक है।\nएक तरह से ये कविताएँ समकालीन भारतीय मनुष्य का इतिहास भी हैं । यही वजह है कि जगूड़ी कविता के चालू ढाँचे को उस बड़ी हद तक तोड़ते हैं जो कविता और उसके पाठक के बीच की नक़ली दूरी तोड़ने के लिए जरूरी है।\nये कविताएँ आदमी से लगभग बातचीत हैं और इनमें ज़िन्दगी के मौजूदा अन्धकार में लड़ी जा रही लड़ाई के कथापक्ष हैं। इनमें शब्दों से एक नया काम लिया गया है जो आदमी की पीड़ा को ताक़त तक पहुँचाने की अभीप्सा से अधिक सक्रिय दिखते हैं।
लीलाधर जगूड़ी - जन्म : 1 जुलाई 1940, धंगण गाँव, टिहरी (उत्तराखंड)। ग्यारह वर्ष की अवस्था में घर से भागकर अनेक शहरों और प्रान्तों में कई प्रकार की जीविकाएँ करते हुए शालाग्रस्त शिक्षा के अनियमित क्रम के बाद हिन्दी साहित्य में एम.ए.। फ़ौज (गढ़वाल राइफल) में सिपाही। लिखने-पढ़ने की उत्कट चाह के कारण तत्कालीन रक्षामन्त्री कृष्ण मेनन को फ़ौज से मुक्ति के लिए प्रार्थनापत्र भेजा, फलतः छुटकारा। 1970 के 13 सितम्बर को भयंकर प्राकृतिक त्रासदी में परिवार के सात लोगों की एक साथ मृत्यु। 1966-80 तक शासकीय विद्यालयों में शिक्षण-कार्य और बचे हुए परिवार का पुनर्वास उत्तरकाशी में। यहाँ भी त्रासदी में घर तथा बेटे का व्यावसायिक संस्थान 17 जून 2013 को नेस्तनाबूद। 1980 में पर्वतीय क्षेत्र में प्रौढ़ों के लिए लिखी हमारे आखर (प्रवेशिका) तथा कहानी के आखर पाठ्य-पुस्तकें साक्षरता निकेतन, लखनऊ से प्रकाशित। राजस्थान के कवियों के संकलन लगभग जीवन का सम्पादन। अखिल भारतीय भाषाओं की नाट्यालेख प्रतियोगिता में 1984 में पाँच बेटे नाटक पर प्रथम पुरस्कार तथा फ़िल्म निर्माण। मराठी, पंजाबी, मलयालम, बांग्ला, उड़िया, उर्दू आदि भारतीय भाषाओं में तथा रूसी, अंग्रेज़ी, जर्मन, जापानी और पोलिश आदि विदेशी भाषाओं में कविताओं के अनुवाद। यू.पी. पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा उत्तर प्रदेश की सूचना सेवा के लिए चयन। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, उ.प्र. की मासिक पत्रिका 'उत्तर प्रदेश' तथा नये राज्य उत्तरांचल की प्रथम पत्रिका 'उत्तरांचल दर्शन' का सम्पादन। सेवानिवृत्ति के बाद उत्तरांचल के प्रथम सूचना सलाहकार रहे तथा उत्तराखंड संस्कृति साहित्य एवं कला परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष। प्रकाशित कविता-संग्रह : शंखमुखी शिखरों पर, नाटक जारी है, इस यात्रा में, रात अब भी मौजूद है, बची हुई पृथ्वी, घबराये हुए शब्द, भय भी शक्ति देता है, अनुभव के आकाश में चाँद, महाकाव्य के बिना, ईश्वर की अध्यक्षता में, ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है, कवि ने कहा, जितने लोग उतने प्रेम, ईश्वर का समकालीन कवि। गद्य : मेरे साक्षात्कार, रचना प्रक्रिया से जूझते हुए। सम्मान : रघुवीर सहाय सम्मान, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता द्वारा सम्मानित। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के नामित पुरस्कार सहित अन्य सम्मान। अनुभव के आकाश में चाँद के लिए 1997 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित। 2004 में पद्मश्री से अलंकृत। एशिया और यूरोप के कुछेक देशों की यात्राएँ। भारत की केन्द्रीय साहित्य अकादेमी द्वारा राइटर्स ऐट रेजीडेंस-फेलोशिप से सम्मानित। सम्प्रति : पूर्णतः स्वतन्त्र लेखन। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी की सामान्य सभा के सदस्य। सम्पर्क : 7, सीता कुटी, सरस्वती एन्क्लेव, बदरीपुर रोड (जोगीवाला), देहरादून-248005 फोन : 0135-2666548, मो. 09411733588
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