Raat Aur Vishkanya

  • Format:

रात और विषकन्या - \nबीसवीं सदी के आख़िरी दशकों में उभरे जो कवि समय की पहचान की निरन्तर कोशिश के साथ एक सार्थक जीवन दृष्टि के लिए पढ़े जायेंगे, उनमें नोमान शौक़ महत्त्वपूर्ण हैं। नब्बे का दशक कई मायनों में युगान्तरकारी था। बकौल बर्तोल्त ब्रेख़्त यह वह समय था जब 'बहुत सारी चीज़ें रूढ़ हो चली' थीं और 'शब्दों पर सुरक्षाप्रियता का लेप चढ़ गया' था। मुक्तिबोध के समय जो यथार्थ 'अँधेरी स्याह' रातों में गश्तियाँ लगाया करता था, अब खुले आम दिन-दहाड़े रथ पर सवार जुलूस निकालने लगा था। उपभोक्तावाद, भूमण्डलीकरण, बाज़ारवाद, सूचना संक्रान्ति का हल्ला भी इसी दशक में होता है। निश्चित तौर पर ऐसे कठिन समय में कविताई भी कठिन से कठिनतर होती गयी।\nलगभग यही वह समय है जब नोमान शौक़ कविता फलक पर नमूदार होते हैं। इस नये और किंचित अस्पष्ट यथार्थ के बरअक्स उनके यहाँ सरल भावुकता के गहनतर रूपों में एक अबोधता या विस्मय है, साथ ही एक कठोर जिजीविषा और उन खण्डित होते मूल्यों का आह्वान भी, जो कवि परम्परा से अनुस्यूत हैं।\nउर्दू की ख़ुशबू से लबरेज़ ये कविताएँ साम्प्रदायिकता और भूमण्डलीकरण की बर्बरता का प्रतिकार विद्रोह की जिस भाषा में करती हैं, वह इस पुस्तक को विशिष्ट बनाती है।

नोमान शौक़ - जन्म: 2 जुलाई 1965, आरा, (बिहार)। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी और उर्दू)। कविताएँ, ग़ज़लें, आलोचनात्मक लेख, समीक्षाएँ और हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी तथा अंग्रेज़ी से परस्पर अनुवाद विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। अजनबी साअतों के दरमियान, जलता शिकारा ढूँढ़ने में (ग़ज़ल संग्रह); फ्रीज़र में रखी शाम (नज़्म संग्रह) प्रकाशित। कई रचनाओं का अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद।

नौमान शोक

Customer questions & answers

Add a review

Login to write a review.

Related products

Subscribe to Padhega India Newsletter!

Step into a world of stories, offers, and exclusive book buzz- right in your inbox! ✨

Subscribe to our newsletter today and never miss out on the magic of books, special deals, and insider updates. Let’s keep your reading journey inspired! 🌟