जानी-पहचानी इस नदी मेंमैं अनजाने तट तलाशता फिरता हूँमाझी मुझे ज़िद्दी कहकरमेरा उपहास उड़ाता हैपर मैं फिर भी बहता चला जाता हूँभोर के वक़्त मंदिर की घंटीजब अज़ान में मिल जाती हैदुनिया और उसके नियम-क़ानूनव्यर्थ नज़र आने लगते हैंविकल्प बहुत हैं जीने केपर विकल्प सम्पूर्ण नहींसिवाए किसी खोज के।जीवन में हमारे सामने कई ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जिन्हें हम बदलना चाहते हैं, उन्हें बेहतर बनाना चाहते हैं, फिर चाहे वो चीज़ें आपके अतीत से जुड़ी हुई हों या फिर आपके वर्तमान से। हम इंसानों की एक ख़ासियत होती है- हमेशा किसी-न-किसी चीज़ की खोज करना; कभी सपनों की खोज तो कभी जीवन के प्रश्नों के उत्तर की खोज तो कभी-कभी अपने भविष्य को बेहतर बनाने के उपाय की खोज। अमित गुप्ता की ’रात के उस पार’ उनके मन के भीतर चलने वाली खोज का लेखा-जोखा है, जिसमें वो सपनों की, जीवन रूपी प्रश्नों के उत्तर की और उजाले की खोज में जुटे हुए हैं।
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Amit GuptaAdd a review
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