प्रस्तुत पुस्तक में आधुनिक हिन्दी साहित्य सम्बन्धी नये मानदण्डों पर आधारित गम्भीर टिप्पणियाँ संकलित हैं। पुस्तक पाँच भागों में विभक्त है। पहले भाग में सैद्धान्तिक चर्चा है। दूसरे भाग में हिन्दी के 'नयी कविता' आन्दोलन तथा उसके विकास की गहरी पड़ताल की गयी है। तीसरे भाग में 'भूले-बिसरे चित्र', 'बूँद और समुद्र', 'सत्तीमैया का चौरा', और 'चारुचंद्र लेख' जैसे विशिष्ट उपन्यासों के माध्यम से हिन्दी उपन्यास के आधुनिक स्वरूप को सामने रखा गया है। चौथे भाग में नयी कहानी तथा साठोत्तरी पीढ़ी से सम्बन्धित विशेष चर्चा है। डॉ. अवस्थी समकालीन कहानी की गहरी समझ रखने वाले समीक्षक हैं और कलकत्ता कथा समारोह में पढ़ा गया उनका प्रसिद्ध आलेख भी यहाँ संकलित है। पाँचवें भाग में लेखक ने नयी नाट्य समीक्षा के औचित्य और उसके स्वरूप का विश्लेषण किया है। मरणोपरान्त डॉ. देवीशंकर अवस्थी की पहली पुस्तक ।
देवीशंकर अवस्थी (1930-1966) जन्म : 5 अप्रैल, 1930; ग्राम-सथनी बालाखेड़ा, जिला उन्नाव (उ.प्र.) । शिक्षा : रायबरेली और कानपुर में। 1960 में आगरा विश्वविद्यालय से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में पीएच.डी. । इसके अतिरिक्त लॉ (कानून) की भी डिग्री ली थी। कार्यक्षेत्र : 1953 से 1961 तक डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर में अध्यापन। 1961 से मृत्युपर्यन्त (13 जनवरी, 1966) दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग से सम्बद्ध ।
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