रहमानी राही की प्रतिनिधि कविताएँ - \nहमारे समय के एक निर्लिप्त साधक, बेचैन खोजी और सचेत रचनाकार कश्मीरी कवि रहमान राही की हिन्दी में रूपान्तरित प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है यह पुस्तक। रहमान राही पिछले पचास वर्षों से कवि और आलोचक के रूप में कार्यरत हैं। वे पहले उर्दू में लिखते रहे मगर अपनी मातृभाषा में कविता रचने की छटपटाहट ने उन्हें कश्मीरी साहित्य की सेवा से जोड़ दिया। आज कश्मीरी उनका जीवन संगीत बन गयी। बक़ौल उन्हीं के—\n\n'ऐ मेरी कश्मीरी ज़बान\nमुझे तेरी क़सम\nतू मेरी चेतना, \nतू ही मेरी आत्मा...'\nरमाकान्त रथ ने ठीक ही लिखा है कि रहमान राही की कोई भीतरी विवशता है जो महान कविता का झरना बनकर उन्हें सम्पन्न करती है। रहमान राही ने अपने लेखन से कश्मीरी को एक नया मुहावरा दिया और उसे इतना समृद्ध बनाया कि अन्य भाषाओं के दबाव के बावजूद कश्मीरी की अपनी एक अलग ही अक्षुण्ण पहचान बन गयी।\nकश्मीरी के प्रति उनके इस गहरे लगाव और निर्भीक प्रेम के कारण उनका काव्य किसी को भले ही 'हंगामी' लगे, पर उसका मूल स्वर मानव की पीड़ा है। दूसरे शब्दों में, उनकी कविता तात्कालिकता के साथ-साथ सार्वकालिकता की भी अभ्यर्थना है। दरअसल रहमान राही इतिहास और सामयिकता दोनों के साक्षी है।\nआशा है, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रहमान राही का यह काव्य संकलन हिन्दी के कवि-हृदय पाठकों को रुचिकर लगेगा।
रहमान राही - रहमान राही का जन्म 6 मई, 1925 को महाराजगंज, श्रीनगर (कश्मीर) में हुआ था। उन्होंने अमरसिंह कॉलेज, श्रीनगर से बी.ए. 1952 में, एम.ए. (फ़ारसी) तथा 1962 में एम.ए. (अंग्रेज़ी) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। आजीविका के लिए बारामुला के सार्वजनिक निर्माण विभाग में कुछ समय कार्य करने के बाद उर्दू पत्रकारिता में क़दम रखा और दैनिक 'ख़िदमत' के सहायक सम्पादक हुए। कुछ वर्षों बाद व्याख्याता होकर घाटी के विभिन्न कालेजों में उर्दू-फ़ारसी पढ़ाते रहे। 1975 में कश्मीर विश्वविद्यालय में कश्मीरी विभाग में सीनियर फ़ेलो हुए तथा संस्थापक अध्यक्ष बनने के बाद सर्वप्रथम प्रोफ़ेसर एमेरिटस का गौरव प्राप्त किया। श्री राही सन् 1961 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा 2000 में पद्मश्री से सम्मानित हुए। वे साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता, विश्व हिन्दी सम्मेलन सम्मान, रोब ऑफ़ ऑनर, कबीर सम्मान, मानव संसाधन मन्त्रालय की एमेरिटस फ़ेलोशिप, ऑल इंडिया बंगाली कॉन्फ्रेंस द्वारा श्रेष्ठ कश्मीरी कवि का पुरस्कार तथा जम्मू-कश्मीर एकेडमी ऑफ़ आर्ट कल्चर ऐंड लेंग्वेजेज़ के पुरस्कार के साथ-साथ वर्ष 2004 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हैं। रहमान राही की प्रकाशित पुस्तकें हैं— सनवन्य साज़, सुबहुक सौदा, कलाम-ए-राही, नौ रोज़ि सबा, सियाह रूद् जयन मन्ज़, शाह रग वॉयिथ (कविता संग्रह); कहवट, वज़नुक सूरत-ए-हाल, शारशिनॉसी (आलोचना); बाबा फ़रीद, फरमोव ज़रथुस्थन, सबा ए-मौलाकात, डॉ. फास्टस (अनुवाद); अज़िच कॉशिर शॉयरी, संगलाब, कॉशिर शार सोंबरन (सम्पादित), त्रिभाषा कोश, उर्दू-कश्मीरी फरहंग (सह-सम्पादित शब्दकोश)।
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