प्रख्यात ललित निबन्धकार और मनीषी चिन्तक स्व. कुबेरनाथ राय की यह पुस्तक रामायण महातीर्थम् स्वयं श्री राय द्वारा संयोजित उनकी अन्तिम कृति है, अत इसके प्रकाशन का एक ऐतिहासिक महत्व भी है । संयोगवश इस कृति का प्रकाशन ऐसे समय में हो रहा है जब राम विचार और विवाद दोनों के केन्द्र में हैं । इस दृष्टि से रामायण महातीर्थम् जैसे ग्रन्थ का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।\n\nराम का आनन्दमय चेतना स्वरूप कुबेरनाथ राय को सदैव सम्मोहित करता रहा है । अपने अन्तिम दिनों में वे रामकथा के भावात्मक और बौद्धिक सौन्दर्य के अध्ययन और उद्घाटन में एकाग्र थे । उसी का प्रतिफल है रामायण महातीर्थम् । कुबेरनाथ जी ने इसमें राम और रामकथा को नये बौद्धिक सम्मोहन से मण्डित किया है एक नयी लालित्यपूर्ण भंगिमा के साथ । उनका मानना है कि अनहदनाद के साधना शिखर पर स्थित राम को पहचानने का अर्थ ही भारतीयता के सारे स्तरों के आदर्श रूप को, भारत के सहज चिन्मय रूप को पहचानना है ।\n\nपुस्तक में रामकथा में निहित आर्ष भावना और विचारों का विस्तृत और गम्भीर विवेचन है ।
कुबेरनाथ राय - प्रख्यात ललित निबन्धकार । जन्म : 1935, मतसा (गाजीपुर) उत्तर प्रदेश । प्रमुख रचनाएँ : मराल, प्रिया नीलकण्ठी, रसआखेटक, गन्धमादन, निषाद बाँसुरी, विषाद योग, पर्णमुकुट, महाकवि की तर्जनी, मणिपुतुल के नाम, किरात नदी पर चन्द्रमधु, मनपवन की नौका, दृष्टि अभिसार, त्रेता का बृहत्साम, उत्तर कुरु, मराल, अन्धकार में अग्निशिखा, वाणी का क्षीर सागर, कथा-मणि और कामधेनु । उपलब्धियाँ : कामधेनु भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित, इसी पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार। गन्धमादन, विषाद योग, पर्ण मुकुट भी हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। महाकवि की तर्जनी, मानस संगम कानपुर, साहित्य अनुसन्धान परिषद् कलकत्ता और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत । त्रेता का बृहत्साम भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता से पुरस्कृत । निधन : 5 जून, 1996, गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश) ।
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