प्रस्तुत पुस्तक को मूल रचना का अनुवाद नहीं कहा जा सकता क्योंकि शब्द-रचना का मौलिक ढाँचा गोस्वामी जी का ही है। फिर भी खड़ी बोली के अधिक अनुकूल होने से वह मूल रचना से भिन्न भी है। उसकी सफलता की कसौटी एक स्वतन्त्र अनुवाद की नहीं है; उसकी सफलता को आँकने का एकमात्र उपाय यही है कि हम देखें कि उसे पढ़ने के बाद हम गोस्वामी तुलसीदास के अधिक निकट पहुँचे अथवा नहीं। इस तरह यह रामचरितमानस तक पहुँचने के लिए ऊँची-नीची धरती पर रचे हुए एक नये मार्ग के समान है।\n\nकहना न होगा कि यह कार्य बहुत ही कठिन था, सहसा किसी में उसे उठा लेने का साहस भी न होगा। किन्तु यदि कोई कवि इस युग में उसे पूरा करने के योग्य था, तो वह निराला जी ही हैं। उन्होंने गोस्वामी जी की कृतियों का कितना गम्भीर अध्ययन किया है, यह बात अब किसी से छिपी नहीं है। अपने साहित्यिक जीवन के आरम्भकाल में ही- 'समन्वय' पत्र के सम्पादक होने के समय उन्होंने रामचरितमानस के सातों काण्डों की मौलिक व्याख्या करते हुए कई निबन्ध लिखे थे। 'तुलसीदास' नाम के काव्य-खण्ड में उन्होंने अनेक वर्षों के अध्ययन और मनन के आधार पर गोस्वामी जी की काव्य-प्रतिभा के जागरण और उनके युग के संघर्ष का अद्वितीय चित्र उपस्थित किया है। स्वयं निराला जी की काव्य-रचना पर गोस्वामी जी की कृतियों का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव भावों और विचारों के अलावा उनके कला-प्रसाधन पर भी पड़ा है- छन्द-रचना, ध्वनि के आवर्तों आदि पर। विरोधी आलोचकों ने बंगला और अंग्रेज़ी कवियों का प्रभाव जाँचने में जितनी तत्परता दिखाई है, उतनी घर के ही कवियों का वास्तविक प्रभाव देखने में नहीं। वे तो निराला के 'विदेशीपन' के पीछे पड़े थे; साहित्य परम्परा के विकास से उन्हें क्या मतलब था? लेकिन देखिये, किस कौशल से 'छन्द' के ध्वनि आवर्तों को निराला जी ने 'मुक्त छन्द' में बिठा दिया है।\n\n܀܀܀\n\n“कौन नहीं जानता कि उस समय के मठाधीशों और महन्तों ने अपने स्वार्थों को धक्का लगते देखकर समाज-सुधारक तुलसीदास का जीवन दुखमय बना दिया था। इस युग में भी निराला की चोटों से तिलमिलाकर निहित स्वार्थों के प्रतिनिधियों ने उनके जीवन को वैसा ही दुखमय बनाने की चेष्टा की है। लेकिन साहित्य की भागीरथी इन कठिनाइयों के कगारों को काटती हुई बहती ही जाती है और जो उसकी धारा को रोकने का विफल प्रयास करते हैं वे स्वयं ढह कर बह जाते हैं। हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील परम्परा ने आज तक इसी तरह विकास किया है और निःसन्देह आगे भी करेगा।”
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