आचार्य शुक्ल की स्पष्ट मान्यता है कि भाव या मनोविकार अपने आप में शुभ या अशुभ नहीं होते हैं। इन भावों के नियोजन के आधार पर इनके परिणाम तय होते हैं। उनके अनुसार भावक्षेत्र अत्यन्त पवित्र क्षेत्र है। अपने निहितार्थों की पूर्ति के लिए मनुष्य जाति इसका उपयोग हमेशा से करती आयी है। ‘लोभ' सीमित रूप में मानव समाज में कटुता पैदा करने वाली वृत्ति है, वही उदात्त रूप में समाज कल्याण का औज़ार बन जाती है। ‘देश-प्रेम' को वे 'लोभ' का ही उदात्त रूप मानते हैं। - इसी पुस्तक से
अभय कुमार ठाकुर जन्म : 04 फ़रवरी 1972, बेगूसराय, बिहार । शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण विद्यालय में। बी.ए. (ऑनर्स), एम.ए., एम.फिल. एवं पीएच.डी. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में । विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान प्रो. सावित्री सिन्हा स्मृति स्वर्ण पदक, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, हिन्दी अकादमी प्रतिभा पुरस्कार से नवाज़े गये। कार्यक्षेत्र : वर्ष 1997 में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित परीक्षा सिविल सेवा परीक्षा में चयनित होकर भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के रूप में कार्यरत । देश के विभिन्न हिस्सों में सहायक आयकर आयुक्त, उप आयकर आयुक्त, संयुक्त आयकर आयुक्त, अपर आयकर आयुक्त एवं आयकर आयुक्त के रूप में सफलतापूर्वक उत्तरदायित्व का निर्वाह किया। सम्प्रति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वित्त अधिकारी के पद पर प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं। रचनाएँ : रघुवीर सहाय और प्रतिरोध की संस्कृति, स्त्रियों का अमृत महोत्सव कब होगा?, रामचन्द्र शुक्ल : कल, आज और कल (आलोचना / सामाजिक विमर्श) । रुचियाँ : देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण एवं संस्कृति तथा साहित्य के मुद्दों से जुड़ाव । भ्रमण के दौरान विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाले तत्त्वों की अनवरत तलाश । सम्पर्क : बी-203, विराट लावण्या, डी.एल.डब्लू.- बी.एच.यू. रोड, वाराणसी-221005 ई-मेल : thakurabhayirs@yahoo.co.in, fo-bhu@bhu.ac.in
सम्पादक अभय कुमार ठाकुरAdd a review
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