रामकृष्ण परमहंस - \nरामकृष्ण परमहंस महात्मन् पुरुष थे। उन्होंने बचपन से ही सादगीपूर्ण जीवन अपनाया और भक्ति-भाव में लीन रहने लगे। लेखक ने अपने स्वाध्याय से इनके जीवन चरित को बड़े ही मनोभाव से लिखा है। रामकृष्ण माँ काली के भक्त थे। 'माँ' के अलावा उन्हें किसी से भी प्रीत नहीं थी। इसलिए विवाह के उपरान्त उन्होंने अपनी जीवन-संगिनी को भी अपने आचरण में ढाल लिया और दोनों मानव-कल्याण के लिए कार्य करने लगे।\nलेखक ने रामकृष्ण परमहंस के गूढ़ रहस्यों को बड़े ही सहज शब्दों में रखा है, ताकि इस किताब के हर उम्र के पाठक परमहंस की जीवनी को अपने हृदय में सहज ही उतार सकें। पाठकों की सुविधा के लिए लेखक ने पुस्तक के पूरे विषय को अलग-अलग शीर्षकों में विभक्त किया है। लेखक ने इन शीर्षकों में विभक्त रामकृष्ण परमहंस के जीवन को इस तरह रखा है कि वह सीधे दिल में उतरता चला जाता है। यह पुस्तक निश्चित रूप से युवा पीढ़ी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
महेश दर्पण - सुपरिचित कथाकार, हिन्दी कहानी के अध्येता और पत्रकार। अब तक सात कहानी संग्रह, दो लघुकथा संग्रह, एक यात्रा वृत्तान्त, एक आलोचना, एक जीवनी, पाँच बाल और नवसाक्षर पुस्तकें प्रकाशित। 'बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानियाँ' के अतिरिक्त दस पुस्तकों का सम्पादन और दो विदेशी पुस्तकों का अनुवाद। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान, पुश्किन सम्मान, हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान एवं कृति पुरस्कार, पीपुल्स विक्ट्री अवार्ड, नेपाली सम्मान, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सम्मान, राजेन्द्र यादव सम्मान सहित अनेक सम्मान व पुरस्कार। रूसी, अंग्रेज़ी, नेपाली, कन्नड़ और पंजाबी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद। सारिका, नवभारत टाइम्स, सान्ध्य टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में चार दशक काम करने के बाद सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन।
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