रानियाँ सब जानती हैं - \nअपमान-अपराध-प्रार्थना-चुप्पी से उपजी वर्तिका नन्दा की यह कविताएँ उन रानियों ने कही हैं जिनके पास सारे सच थे पर ज़ुबां बन्द। \n\nपलकें भीगीं। साँसें भारी। मन बेदम।\n\nइन कविताओं को समाज में बिछे लाल कालीनों के नीचे से निकाल कर लिखा गया है-सुनन्दा पुष्कर का जाना, बलात्कार की शिकार निर्भया, एसिड अटैक से पीड़ित या बदबूदार गलियों में अपने शरीर की बोली लगातीं या फिर बदायूँ जैसे इलाकों में पेड़ पर लटका दी गयीं युवतियाँ इस संग्रह की साँस हैं।\nये सभी कभी किसी की रानियाँ थीं। बाहर की दुनिया जान न पायी-नयी रानी के लिए पुरानी रानी को दीवार में चिनवाना कब हुआ और कैसे हुआ। रानी के ख़िलाफ़ कैसे रची गयी साज़िश और सच हमेशा किन सन्दूकों में बन्द रहे।\nये कविताएँ प्रार्थनाएँ हैं जो हर उस तीसरी औरत की तरफ़ से सीधे रब के पास भेजी गयी हैं। जवाब आना अभी बाकी है। इसलिए यह भाव अपराध के सीलन और साज़िशों भरे महल से गुज़र कर निकले हैं। वे तमाम औरतों जो मारी गयी हैं, जो मारी जा रही हैं या जिनकी बारी अभी बाकी है उनकी दिवंगत, भटकती आत्माएँ इनके स्वरों से परिचित होंगी।\nवैसे भी इस देश की काग़ज़ी इमारतों में न्याय भले ही दुबक कर बैठता हो लेकिन दैविक न्याय तो अपना दायरा पूरा करता ही है। राजा भूल जाते हैं जब भी कोई विनाश आता है, उसकी तह में होती है-किसी रानी की आह!\nयह संग्रह उन सभी राजाओं के नाम जिन्होंने रात के घुप्प अँधेरे में सच की चाबी को कहीं छिपा दिया है और साथ ही उन रानियों के नाम जो बादलों के सोखे गये सुख के अक्स को अपने सीने में दुबकाये बैठी हैं। वैसे चाबी जहाँ भी रहे, क़िले के बाहर से गुज़रते हुए अक्सर एक हूक सुनाई देती है। बाहर वाले शायद यह नहीं जानते कि क़िले के अन्दर बैठी रानी ऐलान कर चुकी है- थी... हूँ... रहूँगी...।
वर्तिका नन्दा - मीडियाकर्मी, शिक्षक और चिन्तक महिला सशक्तीकरण के लिए जुझारू एम्बेसेडर। मीडिया साहित्य और अपराध को लेकर प्रयोग। भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी से 2014 के अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित। बलात्कार और प्रिंट मीडिया की रिपोर्टिंग पर पीएच.डी.। दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में पत्रकारिता का अध्यापन जी टीवी, एनडीटीवी, भारतीय जनसंचार संस्थान, नयी दिल्ली और लोकसभा टीवी से भी जुड़ी रहीं। भारतीय टेलीविज़न में अपराध बीट की प्रमुख पत्रकार। ख़ास किताबें : तिनका तिनका तिहाड़-तिहाड़ की महिला क़ैदियों की कविताओं का अनूठा संग्रह, 2013 (बिमला मेहरा, आईपीएस के साथ सम्पादन)। थी. हूँ.. रहूँगी... घरेलू हिंसा पर देश का पहला कविता संग्रह (2012)। टेलीविज़न और क्राइम रिपोर्टिंग (2010) मीडिया पर चर्चित पुस्तक। कला : उनका लिखा गाना-तिनका तिनका तिहाड़ क़ैदियों ने गाया। सीडी भी बनी। घरेलू हिंसा पर उनकी लघु फ़िल्म नानकपुरा कुछ नहीं भूलता भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय के अलावा सीबीएसई के यूट्यूब चैनल का भी हिस्सा। अन्य : लाडली मीडिया अवॉर्ड (2015), स्त्री शक्ति पुरस्कार (2014), यूथ आइकॉन अवॉर्ड (2013), ऋतुराज परम्परा सम्मान (2012), डॉ. राधाकृष्ण मीडिया अवॉर्ड (2012), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अवॉर्ड (2007) और सुधा पत्रकारिता सम्मान (2007)। कविता में दख़ल : 2014 के जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल और कटक लिटरेचर फेस्टिवल में आमत्रित। न्यू यॉर्क में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन (2014) और विश्व हिन्दी सम्मेलन, दक्षिण अफ्रीका में भागीदारी (2012)।
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