Ravindranath Tagore : Upanyas, Stri Aur Navjagran

  • Format:

रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) के उपन्यासों का विस्तृत विश्लेषण अभी तक हिन्दी आलोचना में नहीं हुआ है, हालाँकि उनके उपन्यासों के अनुवाद अवश्य हिन्दी के ख्यातनाम लेखकों के द्वारा किये गये हैं। उन पर बांग्ला व हिन्दी भाषा में कई फिल्मों का निर्माण भी हुआ है। यह पुस्तक तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की आवश्यकताओं तथा सामान्य पाठकों की टैगोर के उपन्यासों में रुचि को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है। वास्तव में उपन्यास लेखन एक बृहत् सभ्यतागत कर्म है जिसमें सामाजिक दृष्टियों व विचारधाराओं के परस्पर टकराव उसकी कथावस्तु को साकार करते हैं। इस कसौटी पर टैगोर के उपन्यास पाठकों व उपन्यास-समीक्षकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते रहे हैं। वे सपाट ढंग से किसी सामाजिक उद्देश्य या सामाजिक आदर्श की लक्ष्मण-रेखा तक सीमित रह जाने के स्थान पर बड़े धरातल पर मानवीय स्थितियों तथा राष्ट्रीय सामाजिक आन्दोलनों में मौजूद विभिन्न वैचारिक तनाव-टकरावों को पेश करते हैं। जिस प्रकार वे कविता में मानते हैं- 'आमि एड पृथीवीर कवि' (मैं इस पृथ्वी का कवि हूँ), उसी प्रकार वह उपन्यास में भी पृथ्वी की, अर्थात सामाजिक हलचलों व उधेड़बुन को आख्यान का आधार बनाते हैं। उनके उपन्यासों का विवेचन करते हुए यह बात भी सामने आती है कि पूरबी आधयात्मिकता, सन्त-परम्परा या रहस्यवाद से सम्बद्ध उनकी छवि उनके उपन्यासों को समझने में विशेष सहायक नहीं है। फकीरों जैसे उनके लम्बे चोगे (गाउन), श्वेत-धवल लम्बी दाढ़ी और योगियों जैसी शान्त मुद्रा से मन में जो छवि बनती है, उनका उपन्यासकार रूप उससे अलग है। वहाँ उन्हें हम एक अधिक सजग तर्कवादी, यथार्थवादी कलाकार तथा अनुशासित गद्यकार के रूप में पाते हैं जिसके लिए संसार को कोई विषय साहित्य में वजर्य या उपेक्षणीय नहीं है। वहाँ जीवन के अमूर्तनों में ले जाने वाला रहस्यवाद नहीं, कठोर जमीन से जुड़ा यथार्थवाद है।

वैभव सिंह 4 सितम्बर 1974, उन्नाव (उ.प्र.)। पीएच.डी. तक की शिक्षा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से। प्रकाशित पुस्तकें : इतिहास और राष्ट्रवाद, शताब्दी का प्रतिपक्ष, भारतीय उपन्यास और आधुनिकता, भारत : एक आत्मसंघर्ष। अनुवाद : मार्क्सवाद और साहित्यालोचन (टेरी ईगलटन), भारतीयता की ओर (पवन वर्मा)। सम्पादन : अरुण कमल : सृजनात्मकता के आयाम, यशपाल के उपन्यास 'दिव्या' पर आलोचना के सीडी संस्करण का। सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय सेमिनारों में भागीदारी। सम्मान : देवीशंकर अवस्थी आलोचना सम्मान, शिवकुमार मिश्र स्मृति आलोचना सम्मान, स्पन्दन आलोचना सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान (भोपाल)। कुछ समय भारतीय वायुसेना में और स्वैच्छिक सेवानिवत्ति। फिर कछ साल पत्रकारिता और विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन। सम्प्रति : अम्बेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली में अध्यापन। ई-मेल : vaibhv.newmail@gmail.com

वैभव सिंह

Customer questions & answers

Add a review

Login to write a review.

Related products

Subscribe to Padhega India Newsletter!

Step into a world of stories, offers, and exclusive book buzz- right in your inbox! ✨

Subscribe to our newsletter today and never miss out on the magic of books, special deals, and insider updates. Let’s keep your reading journey inspired! 🌟