रेखाएँ दुःख की - \nवरिष्ठ रचनाकार विष्णुचंद्र शर्मा जिन अनुभवों को अपनी रचनाओं में रचते हैं वे प्रचलित पद्धति से नितान्त हटकर होते हैं। ये अनुभव एक ऐसे व्यक्ति के हैं जिसने जीवन को उसकी सम्पूर्ण ऊष्मा और सदाशयता के साथ जिया है। 'रेखाएँ दुःख की' में उपस्थित दो उपन्यासिकाएँ विष्णुचंद्र शर्मा के अनुभव संसार और अभिव्यक्ति कौशल को प्रकट करती हैं।\n'रेखाएँ दुःख की' और 'बिगड़ी तस्वीरों का एलबम' को अलग-अलग पढ़ने के साथ मिलाकर भी पढ़ा जा सकता है। जीवन के यथार्थ का एक झीना-सा सूत्र दोनों उपन्यासिकाओं के मर्म को जोड़ देता है। जीवन संघर्ष तो स्पष्ट है, बीच-बीच से कौंधती है एक अदम्य जिजीविषा। दोनों उपन्यासिकाएँ समकालीन समस्याओं से जूझती हैं और सांकेतिकता के श्रेष्ठ तत्त्वों से लाभ उठाते हुए विकसित होती हैं। आधुनिक जीवन की विसंगतियों का चित्रण निश्चित रूप से पाठकों को प्रभावित करेगा। संवाद शैली और छोटे-छोटे विवरणों के कारण ये उपन्यासिकाएँ विशेष बन गयी हैं।\nविष्णुचंद्र शर्मा के कविमन की यह कथात्मक अभिव्यक्ति पर्याप्त महत्त्वपूर्ण है।
विष्णुचंद्र शर्मा - जन्म: 1 अप्रैल, 1933। प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ: 'अपना पोस्टर', 'दोगले सपने' (कहानी-संग्रह); 'तालमेल', 'विडम्बना', 'दिल को मला करे' (उपन्यास); 'आकाश विभाजित है', 'समय है परिपक्व', 'अनुभव की बात कबीर कहै' (कविता संग्रह); 'अन्त की शुरुआत, 'खामोश' (नाटक); 'प्रसाद का समय', 'काल से होड़ लेता शमशेर', 'नागार्जुन : एक लम्बी जिरह', 'मेरे दौर के कवि', 'युद्धकांड के कवि त्रिलोचन' (आलोचना); 'अग्निसेतु', 'मुक्तिबोध की आत्मकथा', 'समय साम्यवादी', 'कबीर की डायरी' (विविध)। अनेक पुस्तकों का सम्पादन। बीस वर्ष तक 'सर्वनाम' पत्रिका का सम्पादन। स्कॉटलैंड, अमेरिका और पेरिस की यात्राएँ।
विष्णुचंद्र शर्माAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers