Salwaton Ka Sargana

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सलवटों का सरगना - 'सलवटों का सरगना' श्री अनिल कुमार श्रीवास्तव की कालजयी रचनाओं का प्रतिनिधित्व करने की एक कोशिश है। 60 एवं 70 के दशक में रची गयी इन कविताओं का विवेचन उस देश-काल-परिस्थिति को ध्यान में रख कर किये जाने के बाद भी, ये आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक जान पड़ती हैं। इस पुस्तक में उनके द्वारा रचित हर प्रकार की कविताओं की प्रतिनिधि कविताएँ सम्मिलित करने का प्रयास है, क्योंकि यदि भूख से जन्मा आक्रोश इसमें शामिल है तो प्रेम की स्मृति भी है, यदि अभाव की बच्ची के खेल देख कर मन निराश हो रूमानियत से इनकार करता है तो वहीं एक लैम्प पोस्ट का दिया जलने से रोशनी की आशा बँधाता है। संसार में बहुत से अद्वितीय साहित्यकार कभी प्रकाशित न हो सके, परन्तु यह निश्चित तौर पर उनकी नहीं समाज की हानि है जो उन सभी का लेखन पढ़ सकने से वंचित रह गया। निश्चित तौर पर ऐसे ही सक्षम प्रकाशन से इन सक्षम रचनाओं को समझने और प्रकाशित करने की आशा की जा सकती थी।

अनिल कुमार श्रीवास्तव - 14 अप्रैल, 1942 को जनमे श्री अनिल कुमार श्रीवास्तव यूँ तो बचपन से ही अभावों और संघर्षों की कीचड़ में कमल की तरह खिल रहे थे पर ये समय 1962 से 1978 तक था, जब कवि सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में अनिल श्रीवास्तव की आवाज़ ओज बनकर गूँजी, धीरे-धीरे साहित्य जगत उनकी प्रतिभा से परिचित हो रहा था। मध्य प्रदेश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों में इनकी कविताएँ एवं लेख निरन्तर प्रकाशित हो रहे थे, साथ ही धर्मयुग, पहुँच, नवीन दुनिया विशेषांकों जैसी पत्रिकाओं में भी इनकी रचनाएँ प्रकाशित हुईं। साहित्य यात्रिक के रूप में श्री रामेश्वर शुक्ल अंचल जी का इन्हें विशेष स्नेह प्राप्त था, उस दौर में उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं व सराही गयीं। मात्र 26 वर्ष की आयु में 1968-1970 में वे जबलपुर साहित्य संघ के प्रचार मन्त्री रहे। इसी समय शहर की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था मिलन के साहित्य विभाग के संयोजक भी बने। उन्होंने युवा संकल्प नाम के अख़बार का सम्पादन किया तत्पश्चात् स्वयं एक अख़बार निकाला 'आदमी' जिसका उद्घाटन एक रिक्शेवाले से करवाया। 27 अक्टूबर, 2019 में बीमारी से उनके शरीर छोड़ने के बाद यह कहानी ख़त्म होती-सी लगती है किन्तु कहानी बस इतनी ही नहीं है। कहानी तो अभी बहुत लम्बी है। उनकी रचनाएँ ये कथा निरन्तर कह रही हैं और आगे भी कहती रहेंगी और उन्हीं के शब्दों में—'और जब कहानी अभी ख़त्म ही नहीं हुई तो वो कहीं से भी स्टार्ट ले सकती है... '

अनिल कुमार श्रीवास्तव

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