शिवाजी ने छत्रसाल के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘वीर बुंदेले कुमार, जो कोई भी देशों धारा का पवित्र व्रत धारण करता है: नीति, त्याग और समता के देवता मंगलगान करते हुए उसके साथ-साथ चलते हैं। शालीनता, माधुर्य और सत्य-प्रतिज्ञा उसके पर छवर डुलाती हैं। दक्षता और तत्परता उसका मार्ग सार्थक करती है। छत्रसाल, मैं भी तुम्हारी ही भाँति स्वाधीनता का पुजारी हूँ।’ इतिहास और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ आचार्य चतुरसेन की लोख-लेखनी से निकले इस प्रेरक उपन्यास में बुदेलखंड की आजादी की बहुत ही संघर्षपूर्ण कहानी दी गई है। छत्रसाल ने जिस अनूठी सूझ-बूझ, आत्मा भिमान और शूरवीरता का परिचय देकर बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया उसका बहुत ही रोचक, उत्तेजक और रोमांचकारी वर्णन इस उपन्यास की विशेषता है।
?????? ??????? ???????? ????? ???? ?? ?? ???? ?????????? ??? ???? ?????? ???? ???????? ?????? ?? ?????? ??? ???? ?????? ??????? '????', '??????', '??????????' ?? '??????' ?? ?????? ??????? ???? ??? ???? ???? ???? ?? ?? ???? ??????? ????????? ???????? ?? ?? ????? ??????, ?????????, ????, ??????, ????????, ?? ????? ?????? ?? ?? ?????????? ???????? ???? ????
Aacharya ChatursenAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers