Sarhad Ke Aar-Paar Ki Shayari – Rafi Raza Aur Tufail Chaturvedi

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एक साथ पहली बार एक किताब में एक पाकिस्तानी और एक हिन्दुस्तानी शायर की ग़ज़लें\n\nइस किताब में शामिल दोनों शायरों की विशेषता है कि ये सहज और सरल शब्दों में गम्भीर से गम्भीर विचार सफलतापूर्वक कह जाते हैं। जहाँ रफ़ी रज़ा को सोशल मीडिया पर अपने विचारों के कारण बहुत से लोगों की नाराज़गी उठानी पड़ती है तो वहीं तुफ़ैल चतुर्वेदी का भी यही हाल है।\n\nपाकिस्तान के शायर, रफ़ी रज़ा, की शायरी में जब मुहब्बत दाख़िल होती है तो पूरी कायनात में फूल से खिलने लगते हैं। ग़ुस्सा फूटता है तो बदला नहीं बेबसी होती है। रफ़ी रज़ा जब हैरत के संसार में प्रवेश करते हैं तो पाठक भी हैरतज़दा हो जाते हैं । वो बने-बनाये ढर्रे पर नहीं चलना चाहते बल्कि दूसरे विद्वानों के अनुभवों से लाभ लेते हुए सब कुछ स्वयं भी अनुभव करना चाहते हैं। रफ़ी रज़ा की ग़ज़लें पहली बार देवनागरी में प्रकाशित हो रही हैं।\n\nचुनिंदा बातों को छोड़कर हिन्दुस्तान के शायर, तुफ़ैल चतुर्वेदी, का व्यक्तित्व काफ़ी हद तक रफ़ी रज़ा से मिलता-जुलता है। लेकिन उनकी शायरी का रंग अलग है। तुफ़ैल चतुर्वेदी का कहना है-\nकोई झोंका नहीं है ताज़गी का \nतो फिर क्या फ़ायदा इस शायरी का \nउनके शे’रों में व्यंग्य की धार भी है और ‘करुण रस रसराज है’ वाली बात भी सत्य साबित होती है।

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